शारदीय नवरात्रि और दशहरा के बाद करवा चौथ का त्योहार सुहागिनों द्वारा मनाया जाता है। जो की कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को पूरे विधि विधान से मनाया जाता है। उसका सुहागिन स्त्रियों के लिए बहुत अधिक महत्व होता है। इस साल करवा चौथ का पर्व 27 अक्टूबर शनिवार को मनाया जाएगा। ये एक दिन का त्यौहार प्रत्येक वर्ष भारत की विवाहित महिलाओं द्वारा मनाया जाता है। विवाहित महिलाएँ पूरे दिन का उपवास रखती हैं , ये व्रत सुबह सूर्योदय के साथ शुरु होता है और चन्द्रोदय के बाद खत्म होता है।
करवा चौथ का व्रत महिलाएँ अपने पति की सुरक्षा और लम्बी उम्र के लिए बिना पानी और बिना भोजन के पूरे दिन कठिन व्रत रखती हैं। मुख्य रुप से ये व्रत भारतीय राज्यों राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश के कुछ भागों, हरियाणा और पंजाब में मनाया जाता था हालांकि आज कल ये भारत के लगभग प्रत्येक क्षेत्र में सभी महिलाओं द्वारा मनाया जाता है कभी करवा चौथ का व्रत कुछ अविवाहित लड़कियों द्वारा भी रखा जाता है अपने मंगेतर की लंबी उम्र के लिए रखती हैं।
करवा चौथ के मौके पर महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना करते हुए दिनभर व्रत रखती हैं। इसके बाद रात को चांद को देखकर अपना व्रत तोड़ती हैं। इस दिन महिलाएं शिव, पावर्ती और कार्तिक की पूजा-अर्चना करती हैं। फिर शाम को छलनी से चंद्रमा और पति को देखते हुए पूजा करती हैं। फिर अंत में चांद का दीदार करने के बाद महिलाएं पति के हाथों पानी पीकर अपना व्रत तोड़ती हैं। ये माना जाता है कि अगर छलनी में चंद्रमा देखते हुए पति की शक्ल देखना शुभ माना जाता है।
करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त:-
करवा चौथ के शुभ मुहूर्त के समय ही पूजा करनी चाहिए। 27 अक्टूबर को करवा चौथ पूजा के लिए शुभ अवधि 1 घंटे और 18 मिनट तक रहेगी। करवा चौथ पूजा का समय शाम 5:36 शाम को शुरू होगा। शाम 6:54 पर पूजा का समय खत्म होगा। और चंद्रोदय का समय रात 8:40 मिनट पर बताया जा रहा है।
करवा चौथ व्रत की पूजा विधि एवं विधान:-
सुबह सूर्योदय से पहले स्नान करके पूजा घर की सफाई की जाती है। फिर सास जो भोजन देती हैं वो भोजन करें और भगवान की पूजा करके निर्जला व्रत का संकल्प लें। फिर बिना जल पिये सारा दिन भगवान का जाप करना चाहिए। यह व्रत शाम को सूरज अस्त होने के बाद चन्द्रमा के दर्शन करके ही खोलना चाहिए।शाम के समय मिट्टी की वेदी पर सभी देवताओं की स्थापना करें, 10 से 13 करवे रखें, पूजा में धूप, दीप, चन्दन, रोली और सिन्दूर थाली में सजा कर रखें।और दीपक चलाते समय पर्याप्त मात्रा में घी रखना चाहिए ताकि वो पूरे समय जलता रहे।चन्द्रमा निकलने से लगभग एक घंटे पहले पूजा शुरु हो जानी चाहिए।ये जब अच्छा माना जाता है तब पूरा परिवार पूजा में शामिल हो। पूजा के समय ही करवा चौथ की कथा सुनी जाती है। चन्द्रमा को छलनी से देखा जाना चाहिए। फिर अंत में पति के हाथों से जल पीकर व्रत समाप्त हो जाता है।
हिंदू महिलाओं के सोलह श्रृंगार हर कोई भलीभांति नहीं जानता है,किन्तु हर कोई महिलाओं के सोलहो श्रृंगार की बात जरूर करता है तो आइए जानते हैं इनके सोलह श्रृंगार और वैज्ञानिक महत्व:-
(1) स्नान :–
16 श्रृंगारों में प्रथम चरण है स्नान। कोई भी श्रृंगार करने से पूर्व नियम पूर्वक स्नान करने का अत्यंत महत्व है। स्नान में शिकाकाई, भृंगराज, आंवला, उबटन और अन्य कई सामग्रियों और इनके नियम – इन सबका आयुर्वेद के ग्रंथों में विस्तार से जिक्र है।
(2) बिंदीया:-
इसे कोई भी महिला धारण कर सकती है।
(3) सिंदूर:-
यह सुहागन महिलाओं का सबसे महत्वपूर्ण श्रृंगार है।
(4) काजल:-
काजल आंखों के सौंदर्य की वृद्धि करता है।
(5) मेहंदी:-
हिन्दू धर्म में मेहँदी को एक शुभ प्रतीक माना जाता है। स्त्रियां इसे करवा चौथ और अन्य ऐसे कई मंगल पर्व हैं, जब हाथों पर मेहँदी बनवाती हैं। खूबसूरती से रची हुई मेहँदी बहुत सुन्दर भी लगती है, और लगभग सभी लड़कियों और महिलाओं में यह काफी प्रचलित है। कुछ बेहद ख़ास मौके जैसे शादी-विवाह पर तो पैरों पर भी मेहँदी लगायी जाती है। शादी में तो काफी हिन्दू पुरुष भी हाथों और पैरों पर मेहँदी बनवाते हैं। भारत के विभिन्न राज्यों, हिन्दू धर्म की अलग-अलग जातियों के अनुसार मेहँदी लगाने की भिन्न-भिन्न परम्पराएं हैं। जैसे की राजस्थानी या मारवाड़ी पुरुष शादी के वक्त पैरों और हाथों दोनों पर ही मेहँदी लगवाते हैं।
(6) फूलों का गजरा:-
इससे बालों से भी फूलों सी महक आती है।
(7) मांग टिका:-
दुल्हन को सर्वप्रथम जो आभूषण पहनाया जाता है, वो है मांग टिक्का। क्योंकि इसे मुख्यतर मांग पर लगाया जाता है, इस टिक्के को मांग टिक्का कहते हैं। इसका एक हिस्सा सामने माथे पर भी आता है। बाकी अलग-अलग डिज़ाइन के अनुसार इसमें थोड़े बहुत परिवर्तन किये जा सकते हैं।
(8) नथ:-
कई हिन्दू परम्पराएं वैज्ञानिक दृस्टि से भी उत्तम मानी जाती है। नथ पेहेन्ने के लिए जब कान छिदवाया जाता है, तो उससे महिलाओं को एक्यूपंक्चर के लाभ भी मिलते हैं।
(9) कानों के कुंडल:-
चाहे देश हो या विदेश, कान में झुमके पहनने की रुचि हर किसी को है। कानों के आभूषण को कोई भी महिला धारण कर सकती है। कान छिदवाने से शरीर पर एक्यूपंक्चर जैसा प्रभाव पड़ता है जो कि सेहत के लिए फायदेमंद है।
(10) मंगलसूत्र:-
मंगलसूत्र सुहाग की निशानी है जिसे केवल सुहागन औरतें ही धारण कर सकती हैं।
(11) बाजूबंद:-
सोने या चांदी के धातु से निर्मित होने के कारण इन धातुओं का स्पर्श हृदय और यकृत संबंधी रोग दूर होते हैं।
(12) चूड़ि:-
चाहे कुंवारी कन्या हो या फिर सुहागन, चूड़ियाँ पहनना हर एक महिला को पसंद है। ऐसा माना जाता है कि चूड़ियों की खनक नकारात्मक ऊर्जा को दूर करती है।
(13) अंगूठी:-
आभूषणों में से अंगूठी का इस्तेमाल आज भी कम नहीं हुआ है। इसे पहनना सबसे आसान और आरामदायक भी है। इसे रोजाना पहनने से स्वास्थ्य संबंधी विकार दूर होते हैं और पाचन तंत्र भी मजबूत रहता है।
(14) कमरबंद यानी करधन:-
वैज्ञानिक दृष्टिकोण से कमरबंद को नियमित रूप से पहनने पर हर्निया जैसी बीमारी से बड़ी ही आसानी बचा जा सकता है।
(15) बिछिया:-
बिछुआ सुहाग का प्रतीक होते हैं। इन्हें केवल सुहागन औरतों ही धारण कर सकती हैं। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसे पहनना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक सिद्ध होता है।
(16) पायल:-
पायल से निकलने वाली ध्वनि घर में सकारात्मक ऊर्जा का वर्चस्व स्थापित करने में सहायक होती है।
(शिवरतन कुमार गुप्ता )