संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश जी पूजा होती है. बताया जाता है कि जिन भक्तों पर भगवान गणेश जी की कृपा होती है उनके जीवन में सदैव ही सुख समृद्धि सदैव बनी रहती है और वे कष्टों से सदा दूर रहतें हैं. कहा जाता है कि महाभारत काल में भगवान गणेश के इस व्रत का वर्णन खुद भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिर से किया था. कहा जाता है कि अगर पूरी श्रद्धा और भक्तिभाव से इस व्रत को किया जाए तो भगवान गणेश अपने भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
इस बार संकष्टी चतुर्थी की तिथि 8 जून को सोमवार को है.संकष्टी चतुर्थी के दिन चंद्रोदय के बाद संकष्टी की पूजा का विधान है. 8 जून को 21 बजकर 56 मिनट पर चंद्रोदय होगा. मान्यता है कि संकष्टी चतुर्थी के व्रत में केवल फल, जड़ यानि जमीन के अन्दर पौधों का भाग का ही सेवन करना चाहिए. तभी इस व्रत का पूर्ण लाभ मिलता है. हालकिं साबूदाना खिचड़ी,आलू और मूँगफली से निर्मित आहार लिए जा सकते हैं.
जानकार बताते हैं कि इस व्रत का समापन चन्द्रमा के दर्शन करने के बाद किया जाना चाहिए. इस दिन शाम समय भगवान गणेश की पूजा-आरती करनी चाहिए. चंद्र दर्शन के बाद शहद, चंदन, रोली मिश्रित दूध से चंद्रमा को अघ्र्य दें और भगवान गणेश जी की आरती गाएं.
श्री गणेशजी की आरती
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा.
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा.
एकदन्त दयावन्त, चार भुजाधारी.
माथे पर तिलक सोहे, मूसे की सवारी.
पान चढ़े फूल चढ़े, और चढ़े मेवा.
लड्डुअन का भोग लगे, सन्त करें सेवा.
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा.
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा.
अँधे को आँख देत, कोढ़िन को काया.
बाँझन को पुत्र देत,निर्धन को माया.
‘सूर’ श्याम शरण आए, सफल कीजे सेवा.
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा.
दीनन की लाज राखो, शम्भु सुतवारी.
कामना को पूर्ण करो, जग बलिहारी.
जय गणेश, जय गणेश, जय गणेश देवा.
माता जाकी पार्वती, पिता महादेवा.