दक्षिण भारत पोंगल का त्योहार काफ़ी धूमधाम से मनाया जाता है. मकर संक्रांति और लोहड़ी की तरह ही पोंगल भी किसानों के लिए ख़ास महत्व रखता है. इस बार यह 14 जनवरी से 17 जनवरी तक मनाया जाएगा. पोंगल के दिन से तमिल नववर्ष की भी शुरुआत मानी जाती है.
पोंगल पर मुख्य तौर पर सूर्य की पूजा की जाती है. पोंगल के दिन को भोगी पोंगल कहा जाता है. इस दिन इंद्रदेव की पूजा की जाती है. लोग वर्षा और अच्छी फसल के लिए पोंगल के पहले दिन लोग इंद्र देव की पूजा करते हैं.
तो वहीं दूसरे दिन सूर्य पूजा होती है. नए बर्तन में नए चावल, मूंग की दाल और गुड़ डालकर केले के पत्ते पर गन्ना, अदरक आदि के साथ पूजा की जाती है. सूर्य को चढ़ाए जाने वाले इस प्रसाद को सूर्य की रोशनी में ही बनाया जाता है.
तीसरे दिन नंदी यानी भगवान शिव के वाहन की पूजा होती है जिन्हें मट्टू भी कहा जाता है. मान्यता है कि भगवान शिव के प्रमुख गणों में से एक नंदी से एक बार कोई भूल हो गई थी. उस भूल के कारण भगवान शिव ने उसे बैल बनकर धरती पर जाकर मनुष्यों की सहायता करने को कहा. जिसके चलते पोंगल का यह पर्व मनाया जाता है.
जबकि चौथे दिन को कन्या पोंगल कहा जाता है. कन्या पोंगलकाली मंदिर में इसे बड़ी धूमधाम से मनाया जाता और इसमें सिर्फ महिलाएं भाग लेती हैं.