बिहार विधानसभा चुनाव के लिए सीट बंटवारे में कांग्रेस अपने हिस्से अधिक से अधिक सीटों को लाने के प्रयास में जुटी है. महागठबंधन के प्रमुख घटक दल कांग्रेस में इसे लेकर पटना से दिल्ली तक मंथन जारी है. बिहार की सत्ता पर कई वर्षों तक एकछत्र राज कर चुकी कांग्रेस अब फिर से पुराने दिन लाने के लिए बेचैन है. हालाँकि यह आसान नहीं है.
बिहार में कांग्रेस के जनाधार घटने का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय और बड़ी पार्टी बिहार में अपेक्षाकृत काफी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर अपने पुराने रुतबे को तलाशने के प्रयास में जुटी है.बिहार में किसी जमाने में कांग्रेस का सामाजिक व राजनीतिक दबदबा पूरी तरह था, लेकिन बाद के दिनों में कांग्रेस इसे बनाए रखने में नाकाम रही और राजनीति में पिछड़ती चली गई. आज भी कहने को तो यहां प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हैं, लेकिन अब तक यहां कमिटि नहीं बनी. काम चलाने के लिए कार्यकारी अध्यक्षों की नियुक्ति जरूर कर दी गई.
कांग्रेस बिहार में जब वर्ष 1990 में (अकले दम पर) सत्ता से बाहर हुई तब से न केवल उसका सामाजिक आधार सिमटता गया बल्कि उसकी साख भी फीकी पड़ती चली गई. कांग्रेस के एक नेता नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहते हैं कि कांग्रेस जनता से दूर होती चली गई. मतदाताओं के अनुरूप कांग्रेस खुद को ढाल नहीं सकी. बिहार में आए सामाजिक बदलावों के साथ खुद को जोड़ नहीं पाई. सामाजिक स्तर पर राजनीतिक चेतना बढ़ी जिसे कांग्रेस आत्मसात नहीं कर सकी.
बिहार में वर्ष 1952 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल मतों का 42.09 प्रतिशत वोट मिले थे जबकि वर्ष 1967 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से 33.09 प्रतिशत मत आए.कांग्रेस के सत्ता से दूर होने का मुख्य कारण पारंपरिक वोटों का खिसकना माना जाता है. पूर्व में जहां कांग्रेस को अगड़ी, पिछड़ी, दलित जातियों और अल्पसंख्यक मतदाताओं का वोट मिलता था, कलांतर में वह विमुख हो गया. चुनाव दर चुनाव बिहार में कांग्रेस पार्टी सिमटती चली गई.
वर्ष 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस के 71 प्रत्याशी जीते थे वहीं 1995 में हुए चुनाव में मात्र 29 प्रत्याशी ही विधानसभा पहुंच सके. वर्ष 2005 में हुए चुनाव में नौ जबकि 2010 में हुए चुनाव में कांग्रेस के चार प्रत्याशी ही विजयी पताका फहरा सके.
पिछले चुनाव में कांग्रेस, जदयू और राजद मिलकर चुनाव मैदान में उतरी और कांग्रेस को भारी सफ लता भी मिली. कांग्रेस 27 सीटों पर विजयी हुई और सरकार में भी शामिल हुई. बाद में हालांकि जदयू के अलग होने के बाद सरकार नहीं रही और जदयू ने भाजपा के साथ मिलकर सरकार बना ली. कांग्रेस एक बार फि र इसी सफलता को अब और सुधारना चाहती है.
कांग्रेस के प्रवक्ता हरखू झा कहते हैं कि कांग्रेस के जनाधार में आई कमी का सबसे बड़ा कारण उसके पारंपरिक वोटों का बिखराव था, हालांकि अब वह इतिहास की बात है. कांग्रेस एकबार फि र बिहार में मजबूती के साथ चुनाव मैदान में उतर रही है. उन्होंने कहा कि आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की स्थिति में और सुधार संभव है.