HomeBiharजिस किसान की जिद्द ने गांधी को हराया, उसकी विरासत को बिहार...

जिस किसान की जिद्द ने गांधी को हराया, उसकी विरासत को बिहार सरकार ने भूलाया : पुष्पम प्रिया चौधरी

- Advertisement -

प्लुरल्स पार्टी की प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी ने राजकुमार शुक्ल के गावँ सतवारिया में उनके परिजनों से मिलने के बाद कहा कि “मोहनदास गांधी को महात्मा बनाने वाले जिद्दी किसान राजकुमार शुक्ल को बिहार सरकार ने भूला दिया है”. सतवारिया गाँव में उनके नाती श्री मणिभूषण राय जी के साथ उनकी स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि मोहनदास को किसानों के संघर्ष के प्रतीक बनाने में बड़ी भूमिका निभाने वाले राजकुमार शुक्ल की विरासत को बचाने में बिहार सरकार असफल रही. चंपारण सत्याग्रह जितना गांधीजी का है, उतना ही राजकुमार शुक्ल जी का भी है.

1916 में कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में इसी जिद्दी किसान ने गांधी जी को चंपारण आने का आग्रह किया था. सत्य के प्रयोग में गांधी जी लिखते हैं “लखनऊ कांग्रेस में जाने से पहले तक मैंने चंपारण का नाम तक नहीं जानता था. नील की खेती होती है, इसका तो खयाल भी न के बराबर था. इसके काऱण हजारों किसानों को कष्ट भोगना पड़ता है इसकी भी मुझे जानकारी नहीं थी”. राजकुमार शुक्ल नाम के चंपारण के एक किसान ने वंहा मेरा पीछा पकड़ा और जिद करते रहें औऱ इस किसान की जिद ने मोहनदास को चंपारण आने पर विवश कर दिया और बाद में चंपारण आंदोलन भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में किसानों के संघर्ष का प्रतीक बनकर उभरा. गांधी जी ने लिखा “इस अपढ़, अनगढ़ लेकिन निश्चयी किसान ने मुझे जीत लिया”. परंतु बिहार सरकार ने उनकी विरासत को भूलाकर उस जिद्दी किसान को हरा दिया.

पंडित राजकुमार शुक्ल ने अपनी डायरी में लिखा कि उन्होंने महात्मा गांधी को दो साल तक मनाया कि बिहार के चंपारण आकर किसानों को सुनें. विदेश से लौटे गांधीजी तंग हैं कि “सच में मैंने तो चंपारण का नाम तक नहीं सुना, कहाँ है यह जानने का तो सवाल ही नहीं”. अंततः राजकुमार शुक्ल की ज़िद से हारकर वे आते हैं और इतिहास बदल जाता है! गांधी फिर वापस नहीं आए, आज़ादी के आंदोलन में रत हो गए और इधर राजकुमार जी ग़रीबी, संघर्ष और अंग्रेजों के बदले से बर्बाद हो गए, लेकिन वे खुश रहे कि देश बदल रहा है.

पंडित राजकुमार शुक्ल जी की पाँचवी पीढ़ी की बच्ची ने पुष्पम प्रिया चौधरी से कहा “चेहरा देखेंगे”. इसके बाद वो एक ऐसा चेहरा देख रही थी जो बिहार को बदलने की मुहिम में जुड़ी है, अपने सकारात्मक राजनीति के माध्यम से, वह कहती हैं कि “एक सौ साल के बाद अब हमारी चौथी वाली पीढ़ी पर ही ज़िम्मेदारी गिरी है कि हम बिहार के सत्याग्रह की पाँचवी पीढ़ी को अवसरों की आज़ादी दें, उनके जीवन में तेज गति और उड़ने के लिए पंख! मेरे लिए तो बिहार और राजनीति का यही मतलब है – जाति-धर्म का अतीत नहीं, एक नए वर्तमान का सुनहरा भविष्य”!

प्लुरल्स की प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी सतवारिया गाँव में उनके नाती श्री मणिभूषण राय के साथ उनकी स्मृतियों को साझा किया. उन्होनें कहा कि “उनके जाने के 90 साल बाद भी उनके क्षेत्र में विकास शायद फिर एक सत्याग्रह से ही आएगा. आज फिर बिहार के बदलाव का समय है, किसानों, गाँवों को सुनने का समय है. जाइए उनको सुनिए, आप सिर्फ़ गाँव पहुँच जाइए, सब कुछ बदल जाएगा. बदलाव सिर्फ़ सोच और ज़िद से होना है, शेष बातें बस इतिहास के पन्नों में दर्ज होने के लिए हैं”.

- Advertisement -
- Advertisement -
Stay Connected
16,985FansLike
2,458FollowersFollow
61,453SubscribersSubscribe
Must Read
- Advertisement -
Related News
- Advertisement -