“पीतल और कांसे के बर्तन बनाने वाले कारीगरों की जिंदगी सरकारी सहायता के आभाव में बदरंग होती जा रही है” यह बात प्लुरल्स पार्टी की प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी कह रही थी. वह राज्य भर में पीतल-कांसे के बर्तन बनाने वाले कारीगरों से मिल रही हैं. इसी सिलसिले में वह गोविन्दपुर, महुआ वैशाली और केनारचट्टी,गया पहुंची थी.कारीगरों की व्यथा सुनने के बाद पुष्पम प्रिया चौधरी ने बताया कि महुआ में मंजू देवी जी ने रोकर कहा “बहुत मेहनत का काम है मैडम, हमलोगों पर भी ध्यान दीजिएगा”.
पुष्पम प्रिया चौधरी बताती हैं कि “कैलाश साह, मंजू देवी जैसे फूल से लोग लोग पीतल-कांसे के फूल के बर्तन बनाते हैं, और दशरथ साह, रमाशंकर राम जी जैसे व्यापारी पीढ़ियों से काम रहे, लेकिन सब त्रस्त हैं! इस व्यवसाय का “मार्केट लिंक नहीं है,जिस काऱण मेहनत का दाम नहीं मिलता”.
उन्होंने बताया कि “अगर इनको मुरादाबाद की तरह नयी मशीन और तकनीक मिलती तो इस क्षेत्र को भी पीतल नगरी के रूप में विकसित किया जा सकता है”. गाँव में 100 से ज़्यादा परिवार हैं इस समुदाय आधारित व्यवसाय में लेकिन अब सब स्क्रैप का काम करने को मजबूर हैं”. उन्होंने सरकारों और विपक्ष पर हमला बोलते हुए कहा कि “जाति आधारित रैली करने में तो उस्ताद हैं, लेकिन उनके आर्थिक आधार की कब्र खोद कर रख दिया है है इन नक़ली नेताओं ने जिनको इनकी कोई फिक्र नहीं है”.
उन्होंने बताया कि कांसे और पीतल का हज़ारों साल का काम, पूँजी और सरकारी सहायता के अभाव में बर्बादी के कगार पर है. बिना किसी सरकारी सहायता के भी केनारचट्टी, गया के पीतल उद्योग के सरजू साह कसेरा, पप्पू साह कसेरा, बालमुकुंद जी जैसे हीरे जैसे लोग, सोने जैसा काम कर रहे हैं.
कंचन देवी जी ने बताया कि पहले वह इन बर्तनों की मुरादाबाद तक सप्लाई करते थे परंतु अब सत्तू बेचते हैं, अब धीरे-धीरे लोग काम छोड़ रहे हैं. पहले 250 घर में काम था, अब 25 में भी नहीं हो रहा है.
“कुर्किहार में कांसे-पीतल के बुद्ध हज़ारों साल से ज़मीन में दबे पड़े हैं और बग़ल में केनारचट्टी, गया की काँसा-पीतल की हज़ारों साल की कारीगरी दफ़न होने की कगार पर है, लेकिन समय का चक्र घूमा है, अब बुद्ध भी मुस्कुराएँ और हमारे सोने जैसे कारीगरों के मुस्कुराने का समय है” पुष्पम प्रिया चौधरी ने बताया.
पीतल के बर्तनों में चमक लाने वाले कारीगरों का जीवन कब चमकेगा के सवाल पर प्लुरल्स पार्टी की प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी ने बताया कि “2020-30 में कारीगरों का उनके समस्याओं से पीछा छूटने और मर रही कारीगरी, डूब रहे उद्योग और बर्बाद हो रही जिंदगियों के बदलने का समय है”.