दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने दिल्ली सरकार से उस याचिका को प्रतिवेदन के तौर पर देखने को कहा है जिसमें यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि कोविड-19 (COVID-19) के मरीजों का इलाज करने के लिये अस्पतालों द्वारा लिये जाने वाले शुल्क की दरें या अधिकतम सीमा तय की जाए और उनके लिये बिस्तरों की उपलब्धता को प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाए.
वकील प्रवीण चौहान के जरिये विनीत कुमार वाधवा द्वारा दायर की गई याचिका में दिल्ली सरकार (Delhi Government) को यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह ऐसी व्यवस्था बनाए जिसके तहत यहां अस्पताल कोविड-19 बिस्तरों की उपलब्धता को अस्पताल में और अपनी वेबसाइट पर प्रमुखता से प्रदर्शित करें.
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और न्यायमूर्ति प्रतीक जालान की पीठ वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिये मामले की सुनवाई कर रही थी. उसने दिल्ली सरकार से यह भी कहा कि वह दो साल के एक बच्चे की तरफ से दायर उस याचिका को भी प्रतिवेदन के तौर पर देखे जिसमें उसने कोरोना वायरस की रोकथाम के लिये लगाए गए बंद को दिल्ली सरकार द्वारा हटाए जाने के फैसले से उसे और उसके जैसे अन्य छोटे बच्चों को होने वाले खतरे को रेखांकित किया है.
अदालत ने कहा कि सरकार प्रतिवेदन पर विचार कर उसके मुताबिक फैसला करेगी.
अपने पिता के जरिये दायर की गई याचिका में बच्चे ने कहा कि वह संयुक्त परिवार में रहता है जिसमें कामकाजी सदस्य हैं जो दिल्ली सरकार द्वारा आठ जून से घोषित “अनलॉक” की वजह से काम पर या नियमित दफ्तर जाएंगे और आवाजाही पर लगी पाबंदियों के खत्म होने से इन सदस्यों से उसके कोविड-19 की चपेट में आने का काफी खतरा है.
अदालत ने इस बीच उन कई याचिकाओं को निस्तारित कर दिया जिसमें दिल्ली सरकार के सात जून के आदेश को चुनौती दी गई थी. इस आदेश के मुताबिक सरकारी अस्पताल और निजी असपताल व नर्सिंग होम इलाज के लिये सिर्फ राष्ट्रीय राजधानी के लोगों को ही भर्ती करेंगे.
दिल्ली सरकार के वकील ने अदालत को बताया था कि उपराज्यपाल अनिल बैजल ने सरकार के फैसले को पलट दिया है. जिसके बाद अदालत ने इन याचिकाओं को निस्तारित मान लिया.