HomeGujaratकैशलेस गाँव बना गुजरात का “अकोदरा”

कैशलेस गाँव बना गुजरात का “अकोदरा”

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500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने के फैसले के बाद जहाँ लोग नगदी की कमी को लेकर दिक्कतों का सामना कर रहें है। वहीँ दूसरी तरफ गुजरात के एक गांव में इसका कोई असर नहीं पड़ा है। देशभर के शहरों, कस्बों और गांवों में नोटबंदी के बाद बैंकों के बाहर लंबी-लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं। लेकिन इस गांव में सिर्फ एक एटीएम होने के बावजूद कोई लाइन नहीं है।यहाँ के लोग सामान भी खरीदने जाते हैं तो फोन पर टेक्स्ट मैसेज से पेमेन्ट कर रहें हैं। इस मैसेज में पेमेन्ट पाने वाले का अकाउंट नंबर और जितना पैसा ट्रांस्फर किया जाना है  उसके बारे में जानकारी रहती है। यह मैसेज खरीदार सीधे अपने बैंक को भेजता है और फिर आगे का काम बैंक कर देता है। गुजरात के साबरकांठा जिले में स्थित अकोदरा गांव की यही खासियत है कि देश का पहला डिजिटल गाँव अब कैशलेस इकॉनमी की तरफ अग्रसर है। इस गाँव में छोटी से छोटी रकम का भुगतान भी आनलाइन ही होता है।

अहमदाबाद से 90 किमी की दूरी पर स्थित अकोदरा गांव को डिजिटल बनाने में एक प्राइवेट बैंक की भूमिका अहम् है। बैंक ने करीब एक साल पहले इस गांव को गोद लेकर राज्य सरकार के साथ मिलकर इसे डिजिटल गांव बनाने का पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया था।1500 की आबादी वाले इस गांव में 1200 लोगों के पास बैंक अकाउंट हैं। जिसके चलते बैंक की तरफ से  प्रत्येक खाताधारक को मनी ट्रांस्फर की सुविधा दी गई है। गांव पूरी तरह से वाईफाई से लैस है। लेकिन इस बात को ध्यान में रखते हुए कि काफी लोगों के पास स्मार्टफोन नहीं हैं बैंक ने उन्हें एसएमएस के जरिए पैसा ट्रांस्फर करने की सुविधा दी है।

डिजिटल हो चुके अकोदरा में ई-हेल्थ सेंटर भी है जहां गांव वालों के मेडिकल रिकॉर्ड बटन दबाते ही उपलब्ध हो रहें हैं। टेलीमेडिसिन के जरिये यहां के लोग अब स्वास्थ्य संबधी मामलों पर विशेषज्ञ डॉक्टरों की राय भी ले रहें हैं। इतना ही नहीं बदलाव का असर अकोदरा के सामाजिक जीवन पर भी दिख रहा है। आसपास के गांव भी अकोदारा में अपनी लड़कियों का रिश्ता करना चाहते हैं ताकि शादी के बाद उन्हें  मॉर्डन रहन-सहन और बेहतर सुविधाएं मिलें। गांव में आंगनबाड़ी से लेकर हायर सेकेंडरी तक यह बदलाव देखा जा सकता है। गाँव के विद्यालयों में ब्लैकबोर्ड की जगह स्मार्ट बोर्ड ने ले ली है।  पढाई डिजिटल हो गई है। बच्चों के बस्तों में किताबें नहीं टैबलेट हैं। तकनीक का असर विद्यालयों में साफ़ दिखाई देता है जिससे बच्चे  उत्साहित है और उनकी उपस्थिति भी बढ़ी है।

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