लखनऊ : समाजवादी पार्टी में चल रही नूरा कुश्ती के बीच यह साफ हो गया है कि पार्टी के अब दो हिस्से हो चुके हैं। एक हिस्सा अखिलेश को पसंद करता है तो दूसरा हिस्सा मुलायम सिंह यादव को। ऐसे में अब वर्चस्व की इस लड़ाई में अगर दोनों खेमों ने समाजवादी पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘साइकिल’ पर अपना हक जताने की कोशिश की, तो हो सकता है कि विधानसभा चुनाव से पहले सपा के चुनाव चिह्न ‘साइकिल’ पर ही बैन लग जाए।
सपा में चल रहे घमासान के चलते मुलायम और अखिलेश दोनों ही खेमों के अगर कोई भी चुनाव आयोग के सामने चुनाव चिह्न को लेकर दावेदारी पेश करता है तो हो सकता है कि आयोग को साईकिल चुनाव चिन्ह रद्द करना पड़े क्योंकि भले ही मुलायम अपनी साइकिल पर बैठकर यूपी की सरकार चलायी हो, लेकिन इस चुनाव चिह्न का रजिस्ट्रेशन उनके धुर विरोधी रामगोपाव यादव के नाम पर हैं। ऐसे में दोनों तरफ के लोगों की कोशिश होगी कि सपा का जाना-पहचाना चुनाव निशान उसे मिल जाए।
चुनाव निशान किस धड़े को मिलेगा इसका आखिरी फैसला भारतीय चुनाव आयोग करेगा। चुनाव आयोग के सूत्रों के अनुसार चुनाव निशान दिलाने में “पार्टी के संविधान” और “बहुमत के परीक्षण” की अहम भूमिका होगी। अगर सपा के संविधान के आधार पर फैसला लेना मुश्किल हुआ तो चुनाव आयोग दोनों धड़ों को अपना बहुमत साबित करने के लिए कह सकता है।
लेकिन अगर चुनाव आयोग ने सपा के संविधान को तरजीह दी, तो मुलायम सिंह यादव के लिए ये फायदे का सौदा होगा। क्यों की अभी चुनव आयोग के रिकार्ड्स में मुलायमसिंह यादव पार्टी अध्यक्ष हैं। सपा के संविधान के सेक्शन 15 के अनुसार राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अध्यक्ष राष्ट्रीय और विशेष अधिवेशनों की अध्यक्षता करेंगे। इसी सेक्शन के एक सब-क्लॉज के अनुसार राष्ट्रीय अध्यक्ष अनुशासनहीनता के आरोप में किसी पर कार्रवाई कर सकते हैं। इस फैसले को भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।