सुहागन महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र के लिए हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं। वहीं विवाह योग्य कुवाँरी कन्याएं भी सुयोग्य व भगवान शिव जैसा पति पाने की कामना के साथ हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं। व्रत रखने के लिए प्राचीन काल से यूँ तो बहुत सी कहानियां प्रचलित हैं, लेकिन मुख्य कथा यही है कि ये व्रत सुयोग्य पति के पाने की कामना के साथ माता पार्वती जी ने किया था। आचार्य पण्डित वीरेंद्र मणि शास्त्री “सोहास” के अनुसार इस व्रत को विधि विधान और नि:स्वार्थ भाव से किया जाए, तो माता पार्वती जी और देवाधिदेव महादेव भगवान शिव व्रतधारी महिलाओं की हर मनोकामना को पूरी करते हैं।
हरतालिका तीज का व्रत कैसे करें :-
सर्वप्रथम ‘उमामहेश्वरसायुज्य सिद्धये हरितालिका व्रतमहं करिष्ये’
मंत्र का संकल्प करके मकान को मंडल आदि से सुशोभित कर पूजा सामग्री एकत्र करें। हरतालिका पूजन प्रदोष काल में किया जाता हैं। प्रदोष काल अर्थात् दिन-रात के मिलने का समय। संध्या के समय स्नान करके शुद्ध व स्वच्छ वस्त्र धारण करें। तत्पश्चात माता पार्वती तथा भगवान शिव की सुवर्णयुक्त प्रतिमा बनाकर विधि-विधान से पूजन करें। बालू के रेत अथवा काली मिट्टी से शिव-पार्वती एवं गणेशजी की प्रतिमा अपने हाथों से बनाएं। इसके बाद सुहाग (श्रींगार) की पिटारी में सुहाग की सारी सामग्री सजा कर रखें, फिर इन वस्तुओं को पार्वतीजी को अर्पित करें। शिवजी को धोती तथा अंगोछा (गमछा) अर्पित करें और तपश्चात सुहाग सामग्री किसी ब्राह्मणी को तथा धोती-अंगोछा ब्राह्मण को दान में दें।
हरतालिका व्रत कथा :-
तत्पश्चात सर्वप्रथम गणेशजी की आरती, फिर शिवजी और फिर माता पार्वती की आरती करें। भगवान की परिक्रमा करें। रात्रि जागरण करके सुबह पूजा के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं। ककड़ी-हलवे का भोग लगाएं और फिर ककड़ी खाकर उपवास तोड़ें, अंत में समस्त सामग्री को एकत्र कर पवित्र नदी या किसी कुंड में विसर्जित करें।
शास्त्रों के अनुसार मां पार्वती ने अपने पूर्व जन्म में भगवान शंकर को पति रूप में प्राप्त करने के लिए हिमालय पर गंगा के तट पर अपनी बाल्यावस्था में अधोमुखी होकर घोर तप किया। कई वर्षों तक उन्होंने केवल हवा पीकर ही व्यतीत किया। माता पार्वती की यह स्थिति देखकर उनके पिता अत्यंत दुखी थे। एक दिन महर्षि नारद भगवान विष्णु की ओर से पार्वती जी के विवाह का प्रस्ताव लेकर मां पार्वती के पिता के पास पहुंचे, जिसे उन्होंने सहर्ष ही स्वीकार कर लिया। पिता ने जब मां पार्वती को उनके विवाह की बात बतलाई तो वह बहुत दुखी हो गई और जोर-जोर से विलाप करने लगी। सखी के पूछने पर माता ने उसे बताया कि वह यह कठोर व्रत भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कर रही हैं जबकि उनके पिता उनका विवाह विष्णु से कराना चाहते हैं। तब सहेली की सलाह पर माता पार्वती घने वन में चली गई और वहां एक गुफा में जाकर भगवान शिव की आराधना में लीन हो गई।
भाद्रपद तृतीया शुक्ल के दिन हस्त नक्षत्र को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और भोलेनाथ की स्तुति में लीन होकर रात्रि जागरण किया। तब माता के इस कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इच्छानुसार उनको अपनी पत्नी रूप में स्वीकार कर लिया।