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Bihar : प्राकृतिक झीलों को मौत के मुंह में ढकेल “जल जीवन हरियाली योजना” का उत्सव मना रही है सरकार, प्लुरल्स ने दिया संरक्षण का ब्लूप्रिंट

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‘जब तक जल और हरियाली है तभी तक जीवन सुरक्षित है’ का दावा करने वाली बिहार सरकार (Bihar Government) ने एशिया (Asia) में ताजे पानी की सबसे बड़ी गोखुर झील (Gokhur Jheel) और आर्द्रभूमि क्षेत्र वाले कांवर झील (Kanwar Lake) को सरकारी उपेक्षा वाली धीमा जहर देकर मौत की तरफ धकेल दिया. जो अपनी आखिरी सांसे गिन रहा है. बिहार सरकार ऐसे प्राकृतिक धरोहरों के कब्र पर 24524 करोड़ के जल जीवन हरियाली योजना का उत्सव मना रही है.

प्लुरल्स पार्टी की प्रेसिडेंट पुष्मम प्रिया चौधरी (Plurals Party President Pushpam Priya Choudhary) ने बिहार सरकार को आड़े हाथों लेते हुए लिखा “पूरे बिहार में हर जगह यही देखा कि आपकी 25524 करोड़ की जल-जीवन-हरियाली परियोजना के नाम पर ठेकेदारी वाले कृत्रिम तालाब खुद रहे हैं! लेकिन साहब, यहाँ तो पूरी की पूरी झील मरी जा रही है! एशिया की सबसे बड़ी गोखुर झील! यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज (UNESCO World Heritage) भरतपुर वेटलैंड (Bharatpur wetland) से भी तीन गुना बड़ी झील! डॉक्टर सलीम अली (Dr. Salim Ali) के पक्षी विज्ञान की ऐतिहासिक प्रयोगशाला! सैकड़ों दुर्लभ प्रवासी पक्षियों, देशी पक्षियों, अनगिनत जीवों और पौधों का अद्भुत स्वर्ग! सब आज सर्वनाश है. 1989 में 15000 एकड़ क्षेत्र को वेटलैंड और बर्ड सैंकचुअरी नोटिफ़ाई किया जाता है और तब से लेकर आज तक 30 साल में पूरा वेटलैंड सिकुड़ कर 5000 एकड़ भी नहीं रह जाता है, पानी और पक्षी तो कब के उड़ गए! मछुआरों की आजीविका मछली गई, सो अलग! किसान भी खेती करके राजा नहीं हो गए, संघर्ष ही कर रहे!”

पुष्पम प्रिया चौधरी ने बिहार सरकार के नीति निर्धारकों को नीति निर्माण के दिशा में चुनौती देते हुए कावर झील के संरक्षण और संवर्धन हेतु एक ब्लूप्रिंट जारी किया है और चुनौती देते हुए कहा “चलिए अब आपको पॉलिसी-मेकिंग सिखाते हैं और एक शर्त लगाते हैं! आपके जल-जीवन-हरियाली बजट के 20% का एक “कावर रेजुवनेशन प्रॉजेक्ट (Kanwar Rejuvenation Project)” बनाते हैं, हुए कुल 5000 करोड़! उससे 2400 करोड़ में कावर और उसके कैनाल का कम्प्लीट रेस्टोरेशन और बर्ड सैंकचुअरी डेवेलपमेंट, 1000 करोड़ में बेगुसराय (Begusarai) में एक इंटरनेशनल एयरपोर्ट (International Airport) और हॉस्पिटैलिटी (Hospitality) एंड टुरिज़म इन्फ़्रास्ट्रक्चर (Tourism Infrastructure) के लिए पीपीपी सीड कैपिटल (PPP Seed Capital), 500 करोड़ “नेबरहुड ऑर्गैनिक एग्रीकल्चर एंड फार्मर फ़ंड (Neighbourhood Organic Agriculture and Farmers Fund) ” के लिए, 400 करोड़ “मंझौल ब्लॉक नेबरहुड रुरल डेवेलपमेंट (Manjhaul Block Neighbourhood Rural Development)” के लिए, 400 करोड़ “फ़िशरीज़ एंड कम्यूनिटी कैपिटल फ़ंड (Fisheries and Community Capital Fund)” के लिए और 300 करोड़ “जयमंगलागढ़ हेरिटेज डेवेलपमेंट एंड ट्रस्ट फंड” के लिए. यह हुई पॉलिसी, 30 महीने में टोटल प्रॉजेक्ट इम्पलिमेंटेशन (Total Project Implementation) और शर्त यह कि अगले 5 साल में सिर्फ़ इस प्रॉजेक्ट के इफ़ेक्ट से बेगुसराय से मिनिमम 25000 करोड़ की एडिशनल रेवेन्यू. हज़ारों रोज़गार, लाखों लोगों के कम्यूनिटी डेवेलपमेंट (Community Development) और बेगुसराय के अर्बन डेवेलपमेंट (Urban Development) को नहीं जोड़ते हैं.”

गंगा और बूढ़ी गंडक नदियों के बीच बेगूसराय जिले में करीब एक हजार एकड़ में फैला कावर झील के बारे में लिखा कि “साहब यह महज़ झील नहीं हैं, यह उस बेगुसराय की लाइफ़लाइन है जो कभी सेंट्रल बिहार की ईकोनोमिक पाइपलाइन हुआ करती थी. लेकिन यह सब आपसे अगले 30 साल में भी नहीं होगा.”

पुष्मम प्रिया चौधरी ने इसके संरक्षण हेतु जो ब्लूप्रिंट दिया है उसमें बताया गया है कि प्लुरल्स की सरकार अगले 5 साल में जो करेगी उसे “आप बेगुसराय के रुरल (Rural), इंडस्ट्रियल (Industrial), अर्बन (Urban)और इन्वायरॉन्मेंटल (Environmental) बदलाव को पहचान नहीं पाएँगे!”उन्होंने आगे लिखा कि “कावर तो बस एक सैम्पल है, बग़ल में सिमरिया भी है, गंगा भी है, कुम्भ भी है, दिनकर भी हैं, विशाल एग्रीकल्चरल लैंड भी है, डेयरी फ़ार्मिंग भी है, इंडस्ट्रियल हिस्ट्री भी है और कल्चरल-एजूकेशनल-इंटिलेक्चुअल लिगेसी भी, सब अपने को ईकोनोमिक मैग्नेट बनाने को बेक़रार हैं!.”

 पक्षी विज्ञानियों (Ornithologist) का मानना है कि कावर झील में 59 विदेशी और 107 देशी पक्षियों का आशियाना था, प्लुरल्स की पहल से यह फिर से गुलज़ार होगा. क्योंकि “अब बिहार में प्रवासी पक्षियों (Migrant Birds) की वापसी का समय आ गया है, उनके साथी मनुष्यों की तरह!”

पर्यावरण संकट और जलवायु परिवर्तन (Environmental Crisis and Climate Change) के खिलाफ अभियान शुरू करने वाला देश का पहला राज्य बनने की लालसा हो या कावर झील को विश्व धरोहरों में शामिल करने की कामना करने वाली सरकार ने धरातल पर कावर झील को मरने दिया और इसके साथ ही मरी इसके आस पास बसी सभ्यता और उनकी आजीविका. 1984 में 6786 हेक्टेयर में फैला होने वाला यह क्षेत्र 2012 में 2032 हेक्टेयर में सिमट गया. इसके सिमटते आकर ने न केवल एक झील को मारा बल्कि उम्मीदों औऱ आशाओं को भी मारा. प्लुरल्स के ब्लूप्रिंट से पुरातात्विक, प्राकृतिक और धार्मिक बिंदुओ की यह त्रिवेणी बिहार में विकास के नए आयाम स्पर्श करेगी.

परंतु 2 अक्टूबर 2019 को प्रारंभ यह जल जीवन हरियाली योजना (Jal Jeevan Hariyali Yojana) दरअसल क्लाईमेट नहीं, अब सरकारों की नीयत चेंज्ड होने की योजना है. हम प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण इस धरती को अपने आनेवाली पीढियों के लिए संरक्षित रखने का दावा करने वाली सरकार ने कावर झील के लिए एक योजना तक नहीं बनाई.कावर झील के हज़ारों हेक्टेयर, लाखों पक्षी-सरकारी उपेक्षा से जलीय-पर्यावरण विनाश का सबसे बड़ा उदाहरण बन गया. अब समय आ गया है कि लुप्त होती जलीय धरोहर को ज़िंदा कर लाखों रोज़गार की बड़ी अर्थव्यवस्था में बदला जाय.

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