देश में कोरोनवायरस के बढ़ते ख़तरे और वायरस के म्यूटेशन को देखते हुए 18 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को वैक्सीनेट करने की मुहीम शुरू हो चुकी है. इस दौरान लोगों को कोवैक्सीन (Covaxin) और कोविशील्ड (Covishield) के डोज़ दिए जाएंगे. हालांकि जहाँ कुछ लोग वैक्सीन से होने वाले साइड इफेक्ट्स को लेकर लोग घबराए हुए हैं तो वहीं लोगों में वैक्सीन को लेकर भ्रम की स्थिति बनी हुई है कि आख़िर वे कौन सी वैक्सीन लें? तो चलिए आपको बताते हैं कोवैक्सीन (Covaxin) और कोविशील्ड से जुड़ी ख़ास बातें:-
कैसे बनी वैक्सीन?
कोवैक्सीन को दरअसल भारत बायोटक ने इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) और पुणे स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (NIV) के साथ मिलकर डेवलप किया है. कोवैक्सीन एक इनएक्टिवेटेड वैक्सीन है, जो बीमारी पैदा करने वाले वायरस को निष्क्रिय करके बनाई गई है. तो वहीं कोविशील्ड चिम्पैंजी एडेनोवायरस वेक्टर पर आधारित वैक्सीन है. इसमें चिम्पैंजी को संक्रमित करने वाले वायरस को आनुवांशिक तौर पर संशोधित किया गया है ताकि ये इंसानों में ना फैल सके. इस संशोधित वायरस में एक हिस्सा कोरोना वायरस का है जिसे स्पाइक प्रोटीन कहा जाता है. ये वैक्सीन शरीर में इम्यून रिस्पॉन्स बनाती है जो स्पाइक प्रोटीन पर काम करता है. ये वैक्सीन एंटीबॉडी और मेमोरी सेल्स बनाती है जिससे के वायरस को पहचानने में मदद मिलती है.
वैक्सीन के फ़ायदे ?
शुरुआती दौर में कोवैक्सीन पर काफी उंगलियां उठाई गई थीं. लेकिन अब दुनियाभर के एक्सपर्ट ने इसकी काफ़ी प्रशंसा की है. पूरी दुनिया के एक्सपर्ट ने भी माना है कि कोवैक्सीन B.1.617 वेरिएंट यानी भारत के डबल म्यूटेंट वेरिएंट को बेअसर करने में काफ़ी हद तक कारगर है
कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों ही वैक्सीन WHO के स्टैंडर्ड को मैच करती हैं. कोवैक्सीन ने अपना बड़ा बड़ा ट्रायल इस साल फरवरी के अंत में पूरा किया था. क्लीनिकल स्टडीज के मुताबिक, भारत बायोटेक की इस वैक्सीन का एफिकेसी रेट 78 प्रतिशत है. स्टडी के मुताबिक, कोवैक्सीन घातक इंफेक्शन और मृत्यु दर के जोखिम को 100 फीसद तक कम कर सकती है जबकि कोविशील्ड का एफिकेसी रेट 70 प्रतिशत है, जिसे तकरीबन एक महीने बाद दूसरी डोज़ के साथ 90 फीसद तक बढ़ाया जा सकता है. ये न सिर्फ सिम्पटोमैटिक इंफेक्शन में राहत दे सकती है, बल्कि तेजी से रिकवरी भी कर सकती है.
साइड इफेक्ट
कोवैक्सीन और कोविशील्ड दोनों ही रिएक्टोजैनिक साइड इफेक्ट के साथ आती हैं. इसमें इंजेक्शन साइट पर दर्द, बुखार, ठंड लगना, कंपकंपी, चक्कर आना मतली, सिर दर्द या पेट दर्ज जैसे साधारण देखने को मिल सकते हैं. हालांकि कोवैक्सीन में अभी तक कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं देखने को मिला है.
कोविशील्ड भी एक प्रभावशाली वैक्सीन है, लेकिन कई देशों में इसके साइड इफेक्ट्स को लेकर सवाल खड़े हो चुके हैं. कई मामलों में लोगों को ब्लड क्लॉट की समस्या हो चुकी है. जबकि कुछ ऐसे मामले भी सामने आए हैं, जहां लोगों को न्यूरोलॉजिकल से जुड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ा है
कितना डोज़ लेना होगा?
कोरोना से बचाव के लिए दोनों ही वैक्सीन के कुछ सप्ताह के अंतराल में दो-दो डोज़ दिए जाते हैं. ये दोनों ही वैक्सीन हाथ की मांसपेशियों में इंजेक्ट किए जाते हैं. एक्सपर्ट के मुताबिक, कोवैक्सीन की दूसरी डोज की जरूरत 4-6 सप्ताह के बाद होती है. जबकि कोविशील्ड की दूसरी डोज 6-8 सप्ताह के बाद दी जानी चाहिए.
कौन सी वैक्सीन है सबसे ज़्यादा असरदर?
भारत में कोरोना के नए म्यूटेंट ने ज्यादा कहर बरपाया है. ब्रिटेन, ब्राजिलियन और दक्षिण अफ्रीका में पाए गए स्ट्रेन के अलावा भारत में मिले डबल और ट्रिपल म्यूटेंट ने भी चिंता बढ़ा रखी है. एक्सपर्ट्स के मुताबिक, नए इंफेक्शियस स्ट्रेन पर कोवैक्सीन का ज्यादा अच्छा रिजल्ट देखा गया है. हालांकि संक्रमण को जड़ से खत्म करने के लिए दोनों ही वैक्सीन बेहतर बताए गए हैं.
Source : Aaj Tak