देश में मुसलमानों के प्रमुख संगठन जमीयत उलेमा-ए-हिंद (महमूद मदनी समूह) ने दिल्ली के दंगा पीड़ितों को राज्य सरकार की ओर से दिए जाने वाले मुआवज़े को “नाकाफी” बताते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से इसे बढ़ाने की मांग की है.
जमीयत महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने केजरीवाल को लिखे पत्र में कहा कि मुआवज़े की अदायगी में तेज़ी लाने की भी ज़रूरत है. संगठन की ओर जारी बयान के मुताबिक, मदनी ने पत्र में केजरीवाल से कहा, ‘दंगा पीड़ितों के पुनर्वास के लिए घोषित की गई मुआवज़ा राशि अपर्याप्त है. मुआवज़ा पीड़ितों को हुए नुकसान के अनुपात में कम है.’ उन्होंने कहा, ‘इस संबंध में 1984 के सिख विरोधी दंगों के प्रभावितों के मुआवज़े से संबंधित दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्णय को आधार बनाया जाए और मुआवज़े में उचित बढ़ोतरी की जाए.’
दिल्ली सरकार ने दंगों में जान गंवाने वालों के परिवारों को 10-10 लाख रुपए देने की घोषणा की है. इसी तरह जिनके मकान दंगे में नष्ट हो गए हैं, उनको हर मंजिल के लिए पांच लाख रुपये दिए जाएंगे. जिनके मकान में काफी नुकसान हुआ है उनको सिर्फ दो लाख रुपये और हल्के फुल्के नुकसान के लिए 15 से 25 हजार रुपये दिए जाएंगे.
मदनी ने कहा ‘जाहिर सी बात है कि दिल्ली जैसे महंगे शहर में नष्ट हुई हर मंजिल के लिए पांच लाख रुपये और मकानों की मरम्मत के लिए 15, 000 रुपये अपर्याप्त हैं जबकि आज से सात साल पहले मुजफ्फरनगर दंगों में जान गंवाने वालों के परिवारों को 13-13 लाख रुपए दिए गए थे. वहां मुआवज़ा पाने वाले गांव के रहने वाले थे.’ उन्होंने कहा, ‘इस संबंध में दिल्ली के मुख्यमंत्री को तुरंत कदम उठाते हुए मुआवज़े में उचित बढ़ोतरी करनी चाहिए. साथ ही मुआवज़े की अदाएगी में तेज़ी लाने की ज़रूरत है.’
उत्तर पूर्वी दिल्ली में फरवरी के अंत में संशोधित नागरिकता कानून को लेकर हुई सांप्रदायिक हिंसा में 53 लोगों की मौत हो गई थी और 500 से ज्यादा लोग जख्मी हुए थे. इसके साथी ही सैकड़ों दुकान व मकान भी दंगाइयों ने जला दिए थे. इसके बाद मुख्यमंत्री केजरीवाल ने पीड़ितों के लिए मुआवज़ा राशि का ऐलान किया था. वहीं 2013 में उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक हिंसा में करीब 66 लोगों की मौत हुई थी.