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जानिए क्यों मनाया जाता है मकर संक्रांति का त्योहार? स्नान और दान का महत्व

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देशभर में मकर संक्रांति धूमधाम से मनाई जाती है. मकर संक्रांति के दिन दान, स्नान, श्राद्ध, तपर्ण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का अपना ही विशेष महत्व होता है. तो आइए सबसे पहले आपको बताते हैं कि आखिर क्यों मनाई जाती है मकर संक्रांति-

इस दिन सूर्य भगवान अपने पुत्र शनि की राशि को छोड़कर मकर राशि में प्रवेश करते हैं इसलिए इसे मकर संक्रांति कहते हैं. जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करते हैं तो सूर्य की किरणों से अमृत की बरसात होने लगती है. इस दिन सूर्य उत्तरायण होते हैं. शास्त्रों में इस समय को दक्षिणायन यानी देवताओं की रात्रि कहा जाता है. मकर संक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण होने से गरम मौसम की शुरुआत होती है. इसे 14 या 15 जनवरी को मनाया जाता है

मान्यता है कि इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर लौटता है इसलिए भगवान सूर्य को अर्घ्य देने के बाद पूजन करके घी, तिल, कंबल और खिचड़ी का दान किया जाता है. माना जाता है कि मकर संक्रांति के दिन गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम प्रयाग में सभी देवी-देवता अपना रूप बदलकर स्नान करने आते हैं. यही कारण है कि इस दिन गंगा स्नान का भी विशेष महत्व है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति का दिन ही चुना था. इसके साथ ही इस दिन भागीरथ के पीछे-पीछे चलकर गंगा कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थी.

इस दिन पतंग भी उड़ाई जाती है. माना जाता है कि संक्रांति के स्नान के बाद पृथ्वी पर फिर से शुभकार्य की शुरुआत हो जाती है. उत्तर प्रदेश में इस पर्व को दान का पर्व भी कहा जाता है. यहां गंगा घाटों पर मेले का आयोजन किया जाता है और खिचड़ी का भोग लगाया जाता है. संक्रांति के दिन दान देने का विशेष महत्व है. पश्चिम बंगाल में मकर संक्रांति के दिन गंगासागर पर बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है. इस दिन स्नान करने के व्रत रखते हैं और तिल दान करते हैं. हर साल गंगासागर में स्नान करने के लिए लाखों भक्त यहां आते हैं.

बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है और यहां पर उड़द की दाल, ऊनी वस्त्र, चावल और तिल के दान देने की परंपरा है. असम में इसे माघ-बिहू और भोगाली बिहू के नाम से जानते हैं. वहीं महाराष्ट्र में इस दिन गूल नामक हलवे को बांटने की प्रथा है. तमिलनाडू में मकर संक्रांति के पर्व को चार दिनों तक मनाया जाता है. पहला दिन भोगी-पोंगल, दूसरा दिन सूर्य-पोंगल, तीसरा दिन मट्टू-पोंगल और चौथा दिन कन्‍या-पोंगल के रूप में मनाते हैं. यहां दिनों के अनुसार पूजा और अर्चना की जाती है.

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