प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का 500-1000 के नोटों को बंद करने के फैसले का विरोध उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों पर भरी पड़ सकता है।जानकारों का मानना है कि कालेधन पर रोक लगाने की इस पहल का बीजेपी को फायदा होगा।क्युकि साल २०१७ के कुछ राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में नोटबंदी का मामला उनके राजनीतिक विरोधियों की संभावनाओं पर असर डालेगा।
भाजपा को फायदा पहुंचने की बात तब की जा रही है, जब पूरे देश में लोगों को अपनी जरूरतभर के रुपये निकालने और पुराने नोट बदलने के लिए बैंकों और एटीएम की लाइनों में खड़ा होना पड़ रहा है। नोटबंदी के फैसले के बाद विपक्षी दलों के नेताओं को अगले साल की शुरुआत में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अपने अभियान में बदलाव करना पड़ रहा है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अगर राज्य की 20 करोड़ की जनता ने उनके नोटबंदी के फैसले पर मुहर लगा दी तो यह जीत 2019 के आम चुनाव में पार्टी को मजबूती देगी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भ्रष्टाचार और नकली नोटों से निजात पाने के उपाय के रूप में पिछले ही हफ्ते 500-1000 रुपये ने नोटों को बंद करने की घोषणा की थी। बड़े नोट बंद होने के बावजूद आगामी उत्तर प्रदेश चुनावों में रिकार्ड 4000 करोड़ रुपये खर्च होने की आशंका जतायी जा रही है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस नेता प्रदीप माथुर का कहना है कि नोटबंदी के बाद उनकी पार्टी को अपनी पूरी चुनावी तैयारी की दोबारा समीक्षा करनी पड़ेगी। उनका कहना है कि भाजपा के संबंध बड़े कार्पोरेट घरानों से हैं और वह पैसे की इस कमी से ज्यादा आसानी से निपट सकती है। उन्होंने कहा, कांग्रेस को अब छोटी-छोटी रैलियां करने पर मजबूर होना पड़ेगा। यही नहीं मतदाताओं को भी मुफ्त में मिलने वाले सामान में कटौती होगी।एनडीए के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है इसलिए उत्तर प्रदेश चुनाव में जीत भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए और भी ज्यादा जरूरी हो जाती है। कार्नेगी एंडोमेंट फार इंटनेशनल पीस, वाशिंगटन में दक्षिण एशिया मामलों के एक्सपर्ट मिलन वैष्णव का कहा है, ‘उनकी गणना साफ है कि इससे बाकी सब को नुकसान होगा, लेकिन भाजपा और भी मजबूत होकर निकलेगी।’
कैंपेन फाइनेंसिंग पर नजर रखने वाली दिल्ली स्थित सेंटर फार मीडिया स्टडीज (सीएमएस) के अनुसार बीजेपी की उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कैश फंडिंग दो-तिहाई ही है, जबकि उसके विरोधी 80-95 फीसदी तक कैश फंडिंग के भरोसे चुनावी मैदान में उतरते हैं राजनीतिक पार्टियां तो अपने कार्यकर्ताओं को बैंकों की लाइनों में लगवाकर पुराने नोट बदलवा रही हैं। जिससे वे आयकर विभाग की नजरों में आए बिना मोटा कैश जमा कर सकें। विभिन्न रैलियों के लिए लाउडस्पीकर, आउटडोर एसी और सिक्योरिटी मुहैया कराने वाले राजेश प्रताप का कहना है, इवेंट मैनेजरों का तो बिजनेस ही चुनावों के समय चमकता है, लेकिन इस बार वे भी चिंतित हैं। भाजपा के अलावा कोई भी पार्टी जनवरी से पहले कोई बड़ी रैली नहीं करना चाहती।
भाजपा उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती पर कालाधन रखने का आरोप लगाती रही है। मायावती पर रुपये लेकर टिकट बेचने का भी आरोप लगता रहा है। मायावती के करीबी और बसपा के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना है कि पार्टी को अपनी बड़ी रैलियों में कटौती करनी पड़ेगी और अब ज्यादा ध्यान डोर-टू-डोर कैंपेन पर दिया जाएगा। उन्होंने कहा, अकेले हम ही क्यों, हर पार्टी चुनाव जीतने के लिए पैसे खर्च करती है।
सीएमएस की रिसर्च के अनुसार पिछले आम चुनाव में दक्षिणी आंध्र प्रदेश में हर चार में से तीन लोगों को वोटिंग के लिए रुपये मिले थे।सीएमएस के ग्रुप चेयरमैन एन. भास्कर राव ने चुनावी भ्रष्टाचार को सभी तरह के भ्रष्टाचार की जननी कहा है। 2014 के आम चुनाव में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बीजेपी ने जबरदस्त जीत दर्ज की। इसमें 3डी होलोग्राम टेक्नोलॉजी के जरिए गांवों में उनके भाषण भी शामिल थे। सीएमएस का अनुमान है कि पिछले आम चुनावों में विभिन्न पार्टियों ने मिलकर 37 हजार करोड़ रुपये खर्च किए थे।