पेगासस (Pegasus Spyware) के कथित अनधिकृत इस्तेमाल की पड़ताल के लिए उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) द्वारा नियुक्त पैनल ने जांच किये गये 29 मोबाइल फोन में से पांच में कुछ ‘‘मालवेयर’’ पाए हैं, लेकिन यह निष्कर्ष नहीं निकाला जा सका है कि ये ‘‘मालवेयर’’ इजराइली ‘स्पाइवेयर’ के हैं या नहीं.
किसी कम्प्यूटर या मोबाइल फोन तक अनधिकृत पहुंच हासिल करने, उसे बाधित या नष्ट करने के मकसद से विशेष रूप से बनाए गए सॉफ्टवेयर को ‘‘मालवेयर’’ कहा जाता है. प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण ने शीर्ष न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश आर. वी. रवींद्रन द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट पर गौर करने के बाद इस बात का भी उल्लेख किया कि केंद्र सरकार ने पेगासस मामले की जांच में सहयोग नहीं किया.
उच्चतम न्यायालय ने नेताओं, पत्रकारों और कार्यकर्ताओं की लक्षित निगरानी के लिए सरकारी एजेंसियों द्वारा इजराइली स्पाइवेयर के इस्तेमाल के आरोपों की पिछले साल जांच का आदेश दिया था. साथ ही, शीर्ष न्यायालय ने पेगासस विवाद की जांच के लिए तकनीकी और निगरानी समितियां गठित की थी.
शीर्ष न्यायालय के तीन न्यायाधीशों की पीठ ने कहा कि पैनल ने तीन हिस्सों में अपनी ‘‘लंबी’’ रिपोर्ट सौंपी है. इसके एक हिस्से में नागरिकों के निजता के अधिकार तथा देश की साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानून में संशोधन करने का सुझाव दिया गया है.
पीठ ने कहा, ‘‘उन्होंने (समितियों ने) कहा है कि भारत सरकार ने सहयोग नहीं किया. आप यहां वही रुख अपना रहे हैं, जो आपने वहां अपनाया था.’’ पीठ के सदस्यों में न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली भी शामिल हैं.
पीठ ने तकनीकी पैनल की एक रिपोर्ट का जिक्र करते हुए कहा कि यह ‘‘थोड़ी चिंताजनक’’ है, क्योंकि जांच के लिए तकनीकी समिति के पास जमा किए गए 29 फोन में से पांच में ‘‘कुछ तरह का मालवेयर’’ पाया गया, लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ‘‘ये पेगासस के कारण थे.’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘जहां तक तकनीकी समिति की रिपोर्ट की बात है ऐसा प्रतीत होता है कि जिन व्यक्तियों ने अपने मोबाइल फोन दिये थे उन्होंने अनुरोध किया है कि रिपोर्ट साझा नहीं की जाए…ऐसा लगता है कि करीब 29 फोन दिये गये थे और पांच फोन में, उन्होंने कुछ ‘मालवेयर’ पाया लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि यह पेगासस का ‘मालवेयर’ है….’’
पीठ ने कहा कि न्यायमूर्ति रवींद्रन की रिपोर्ट में नागरिकों के निजता के अधिकार की सुरक्षा, भविष्य में उठाए जा सकने वाले कदमों, जवाबदेही, निजता की सुरक्षा बढ़ाने के लिए कानून में संशोधन और शिकायत निवारण तंत्र पर सुझाव दिए गए हैं.
न्यायालय ने कहा कि वह निगरानीकर्ता न्यायाधीश रवींद्रन की रिपोर्ट में कुछ सुधारात्मक उपायों का सुझाव दिया गया है और इनमें एक यह है कि ‘‘मौजूदा कानूनों में संशोधन तथा निगरानी पर कार्यप्रणाली और निजता का अधिकार होना चाहिए.’’
पीठ ने कहा, ‘‘दूसरा यह कि राष्ट्र की साइबर सुरक्षा बढ़ाई जाए और उसे बेहतर किया जाए.’’ न्यायालय ने कहा कि रिपोर्ट में अवैध निगरानी की शिकायतें करने के लिए नागरिकों के वास्ते एक तंत्र स्थापित करने का भी सुझाव दिया गया है.
पीठ ने कहा, ‘‘यह एक बड़ी रिपोर्ट है. देखते हैं कि हम कौन सा हिस्सा मुहैया करा सकते हैं.’’ साथ ही, पीठ ने कहा कि रिपोर्ट जारी नहीं करने का अनुरोध भी किया गया है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘ये सब तकनीकी मुद्दे हैं. जहां तक न्यायमूर्ति रवींद्रन की रिपोर्ट की बात है, हम इसे वेबसाइट पर अपलोड करेंगे.’’
वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और राकेश द्विवेदी ने पीठ से वादियों के लिए ‘‘संपादित रिपोर्ट’’ जारी करने की अपील की. रिपोर्ट का जिक्र करते हुए पीठ ने जब कहा कि केंद्र ने सहयोग नहीं किया है, इस पर सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जवाब दिया कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं है.
न्यायालय अब चार सप्ताह बाद विषय की सुनवाई करेगा.
तकनीकी समिति में साइबर सुरक्षा, डिजिटल फोरेंसिक, नेटवर्क और हार्डवेयर पर तीन विशेषज्ञ शामिल हैं. इस समिति से यह जांच करने और यह पता लगाने को कहा गया है कि क्या पेगासस स्पाइवेयर का इस्तेमाल नागरिकों की जासूसी के लिए किया गया और उनकी जांच की निगरानी न्यायमूर्ति रवींद्रन करेंगे.
समिति के सदस्यों में नवीन कुमार चौधरी, प्रभारन पी. और अश्विन अनिल गुमस्ते शामिल हैं.
निगरानीकर्ता पैनल की अध्यक्षता न्यायमूर्ति रवींद्रन ने की. तकनीकी पैनल की जांच की निगरानी में उनकी सहायता भारतीय पुलिस सेवा के पूर्व अधिकारी आलोक जोशी और साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ संदीप ओबराय ने की.
शीर्ष न्यायालय ने अपने आदेश में कहा था कि जांच समिति को इस बारे में पड़ताल करने की शक्तियां प्राप्त होंगी कि केंद्र ने पेगासस के स्पाइवेयर के जरिये भारतीय नागरिकों के व्हाट्सऐप अकाउंट हैक किये जाने के बारे में 2019 में खबरें प्रकाशित होने के बाद क्या कदम उठाये या क्या कार्रवाई की.
साथ ही, क्या केंद्र सरकार या किसी राज्य सरकार या किसी सरकारी एजेंसी ने भारत के नागरिकों के खिलाफ इस्तेमाल के लिए पेगासस के स्पाइवेयर को हासिल किया था.
उल्लेखनीय है कि एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने दावा किया था कि पेगासस स्पाइवेयर के जरिये कथित जासूसी के संभावित लक्ष्यों की सूची में 300 से अधिक सत्यापित भारतीय मोबाइल फोन नंबर शामिल थे.