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Pippali : कैंसर की नई दवा के लिए भारतीय पीपली महत्वपूर्ण – रिसर्च

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भोजन को मसालेदार बनाने के लिए मशहूर भारतीय पीपली का उपयोग जल्द ही कैंसर के इलाज की प्रभावी दवा तैयार करने में किया जा सकता है.

जैव रसायन विज्ञान जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार भारतीय पीपली में एक ऐसा रसायन पाया जाता है, जो आपके शरीर को उस एंजाइम को उत्पादित करने से रोकता है, जो सामान्यत: बड़ी संख्या में ट्यूमर में पाया जाता है.

यूटी दक्षिण-पश्चिम मेडिकल सेंटर के वैज्ञानिकों ने एक भारतीय मसाले (पीपली) के पौधे में कैंसर रोधी गुण का पता लगाया है. पीपली में पाया जाने वाला यह रसायन पिपरलोंगुमाइन (पीएल) कई प्रकार के कैंसर जैसे प्रोस्टेट, स्तन, फेफड़े, लिंफोमा, ल्यूकेमिया और प्राथमिक मस्तिष्क ट्यूमर और अमाशय के कैंसर में लाभकारी है.

जैव रसायन और विकिरण कैंसर के सहायक प्रोफेसर डाक्टर केनिथ वेस्टओवर ने कहा, ‘‘हम आशान्वित हैं कि हमारी संरचना अतिरिक्त दवा के विकास में मददगार होगी और इसका उपयोग विभिन्न प्रकार के कैंसर के उपचार के लिए किया जा सकेगा.’’

आयुर्वेद में पीपली के फायदे :

1. पीपल, पीपलामूल, चित्रक, चव्य, सौंठ का काढ़ा बना कर पीने से थाइराइड की बीमारी कुछ ही दिनों में ठीक हो जाती है.

2. स्त्रियों की माहवारी यदि कम हो तो पीपली + पीपलामूल (पीपली की जड़) डेढ़- डेढ़ ग्राम मिलाकर उसका काढ़ा बनाकर पीएं. ये लेने से दर्द भी कम होता है और माहवारी भी नियमित हो जाती हैं. यह थोड़ा गर्म होने की वजेह से गर्मी में कुछ कम मात्रा में लें.

3. पीपली का पावडर भूनकर नस्य लेने से सिरदर्द, नजला, जुकाम में आराम मिलता है.

4. कफ वाली हर दवाई में पीपली का प्रयोग होता है. एक ग्राम पीपली के पावडर को दूध के साथ रात को सोते समय लेने से नींद अच्छी आती है और कफ में भी आराम मिलता है. अस्थमा में दो ग्राम पीपली का पावडर शहद के साथ लेंने से कुछ ही समय में कफ बनना बंद हो जाता है.

5. पीपली को बारीक पीसकर उसमे देसी गौ का शुद्ध घी मिलाकर धूप की बत्ती की तरह बना लें और उसके धुआं को किसी मीती के बर्तन पर ले कर काजल बना लें उस काजल को रतौंधी के मरीज को लगाने से कुछ ही समय में रोग समाप्त हो जाता है और आंखें भी ठीक रहती हैं.

6. पीपली के पाउडर को शहद के साथ चाटने से स्वरभंग से छुटकारा मिलता है.

7. बच्चों का दांत निकलते समय पिपली घिसकर शहद के साथ चाटने से दांत आराम से निकल आते हैं.

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