“बिहार का इतिहास गौरवशाली है, बहुमूल्य धरोहर हैं, पर्यटन की अपार संभावानाएँ हैं. इस तरह की बातें सुन-सुन कर कान पक गए. अगर यह सच है तो फिर धरोहर संरक्षित क्यों नहीं होते? टूरिज़म इंडस्ट्री क्यों नहीं बढ़ती? युवाओं को रोज़गार क्यों नहीं मिलता? लोकल इकॉनोमी क्यों नहीं विकसित होती है?” प्लुरल्स की प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी ऐतिहासिक विरासतों और धरोहरों को सरकारों द्वारा बर्बाद किए जाने को लेकर वह सवाल बिहार सरकार से कर रही थी.
उन्होंने आगे बताया कि दरअसल “इनको न करना है और न ही करना आता है. जमुई के इंदपै के पालक़ालीन धरोहर इसके जीते-जागते साक्ष्य हैं. इस पुरातात्विक स्थल की खुदाई तो दूर, सरकार ने संरक्षण तक नहीं दिया. हद तो यह है कि ठेकेदार सरकार ने इंदपै के पुरातात्विक स्थल के ऊपर स्कूल और कार्यालय बना दिया. यह बताता है कि सरकारें अपने पुरातात्विक-ऐतिहासिक स्थलों को कितना महत्वपूर्ण मानती है. इस सुशासन की व्यवस्था देखकर, राजा इंद्रदमन और इंडोलोजिस्ट अलेक्जेंडेर कनिंघम दोनों की आत्मा विचलित हो गयी होगी”. उन्होंने कहा कि “स्थानीय मान्यता के अनुसार इसके अंदर ख़ज़ाना हो न हो, 2020-30 में जमुई के अनछुए और बर्बाद कर दिए गए धरोहर टूरिज़म इंडस्ट्री के ख़ज़ाना बनेंगे, यह तय है”.
विरासतों की उपेक्षा सिर्फ जमुई में हो रही हो ऐसा नहीं है बल्कि इसकी अंतहीन श्रृंखला है. ब्रिटिश काल में पाये गये नालंदा विश्वविद्यालय के अवशेष अभी 60 एकड़ में हैं लेकिन इसके दूर गाँवों तक फैले विस्तार की खुदाई कभी हुई ही नहीं.अंतिम खुदाई 1982 तक हुई. नतीजा यह है कि आज भी आस-पास के गाँवों में मूर्तियाँ और महाविहार के दीवारों के अवशेष मिलते रहते हैं और चोरी होने से पहले गाँव वाले भरसक उसे बचाते रहते हैं. हाल में मिला शिवलिंग एक अस्थायी मंदिर में रखा है, और मूर्ति थाने में जमा करा दिया गया है. पुष्पम प्रिया चौधरी सरकार से अनुरोध करती है कि “कम-से-कम ज़मीन में दबे गौरव को ठीक से खोद भी दें तो नालंदा का वर्तमान समृद्ध हो जाएगा”.
धरोहरों और विरासतों के उपेक्षा की कहानी गया तक विस्तार पाती है. उन्होंने गया के गया के ऐतिहासिक धरोहर अनमोल हैं, बशर्ते कि उनको महत्व दिया जाय कुर्किहार के ब्रॉंज़, कॉपर और पत्थरों की बौद्ध मूर्तियों के भंडार स्थल को आज़ादी के बाद से खुदाई का इंतज़ार है. इस बीच एक चोरी की मूर्ति विदेश में 21 करोड़ में बिकी और बाक़ी की क़ीमत सैकड़ों करोड़ में है. जो बच रहे वो गाँव वालों के घर में हैं”.उन्होंने मुखिया भूषण सिंह का आभार जताया जिन्होंने मूर्तियों की सुरक्षा के लिए उसे गाँव के मंदिर में रखवा दिया.
पुष्पम प्रिया चौधरी ने कहा कि “बस विज़न की बात है कि यह जगह अगर आज यूरोप में होता तो क्या होता! वहाँ पटना में सैकड़ों करोड़ के कृत्रिम बुद्ध स्मृति पार्क नहीं बन रहे होते, बल्कि इस जगह पर हज़ारों रोज़गार और करोड़ों की हेरिटेज ईकोनोमी होती”.
उन्होंने दुख जताया कि सरकारो का पुरातात्विक धरोहरों के प्रति उपेक्षा के इसी भाव के कारण “रामपुरवा की धरती पर उस महानतम सम्राट का शौर्य लज्जित है जिनका साम्राज्य ग्रीस और श्रीलंका के बीच दहाड़ता था. क्योंकि, आज अशोक स्तम्भ का शेर कोलकाता के म्यूजियम में और बैल राष्ट्रपति भवन की सीढ़ियों की शोभा है.‘देवों के प्रिय’ की विरासत बिहार में ज़मींदोज़ है. “बुद्ध-अशोक की धरती” को अब जुमले से ज़मीन पर लाने की ड्यूटी है. नकली नेताओं में अशोक बनने की चाहत तो है पर नीयत नहीं.