इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले में कहा है कि पुलिस के पास जांच का मुक्त अधिकार है और ऐसी जांच सीआरपीसी की धारा 173 (2) के तहत आरोप पत्र दाखिल किए जाने और उस पर संज्ञान लिए जाने के बाद भी जारी रह सकती है. जस्टिस अंजनी कुमार मिश्रा और जस्टिस दीपक वर्मा की पीठ ने आगरा के सुबोध कुमार द्वारा दायर याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की.
याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई थी कि एक बार आरोप पत्र दाखिल होने और उस पर संज्ञान लिए जाने के बाद जांच समाप्त हो जाती है. इसके बाद, संबंधित मजिस्ट्रेट की अनुमति के बगैर पुलिस के लिए आगे की जांच का विकल्प खुला नहीं रहता और चूंकि इस तरह की कोई अनुमति नहीं ली गई, पुलिस की यह कार्रवाई, याचिकाकर्ता के उत्पीड़न के समान है.
याचिकाकर्ता के वकील की इस दलील से असहमति जताते हुए अदालत ने कहा, “कानून के प्रावधान यह व्यवस्था देते हैं कि सीआरपीसी की धारा 173 (2) के तहत मजिस्ट्रेट के पास रिपोर्ट दाखिल किए जाने के बाद एक अपराध के संबंध में कोई भी चीज आगे की जांच नहीं रोकती.”
अदालत ने आगे कहा, “कानून के प्रावधान यह व्यवस्था भी देते हैं कि ऐसे मामले में जहां आगे की जांच की जाती है और कुछ मौखिक या दस्तावेजी साक्ष्य मिलते हैं तो एक पूरक रिपोर्ट संबंधित मजिस्ट्रेट को उपलब्ध कराई जाएगी. पुलिस अधिकारी संज्ञेय मामलों में स्वतः ही आगे की जांच कर सकता है.”
उल्लेखनीय है कि इस मामले में दर्ज प्राथमिकी में आरोप है कि रपट दर्ज कराने वाला व्यक्ति नौ मार्च, 2019 को अपने भतीजे की बारात में शामिल होने खंडवई गांव गया हुआ था. दोपहर करीब ढाई बजे वह एक कमरे में आराम कर रहा था, जहां एक अज्ञात लड़का मौजूद था.
इसके मुताबिक, वह लड़का अचानक उठा और उस व्यक्ति का बैग लेकर बाहर भागा और फिर दूसरे लड़के की मोटरसाइकिल पर सवार होकर वहां से फरार हो गया. बैग में 1.4 लाख रुपये नकदी, सोने-चांदी के गहने एवं मोबाइल फोन था.
याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि उसका मुवक्किल लूट के मामले में दर्ज प्राथमिकी में नामजद नहीं था और पुलिस ने जांच के बाद चार व्यक्तियों को गिरफ्तार किया तथा उनके खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया जिसका संज्ञान संबंधित मजिस्ट्रेट द्वारा लिया गया.
गिरफ्तार आरोपियों में से एक आरोपी के पिता ने बयान दिया कि उसके बेटे ने लूटे गए आभूषण याचिकाकर्ता की दुकान में बेच दिए थे जिस पर पुलिस ने उसका उत्पीड़न करना शुरू कर दिया.