“हम मजदूर हैं मेहनत करके खाते हैं पर बिहार सरकार हमारी मजदूरी पर कुंडली मारकर बैठी है” यह व्यथा सिवान स्थित ‘सहकारी सूत मिल मोहिद्दीनपुर’ मजदूर संघ के सचिव लाल मोहम्मद मियां प्लुरल्स पार्टी के प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी से साझा कर रहे थे.
15 एकड़ में फैले इस टेक्स्टायल ‘स्पिनिंग मिल को बिहार सरकार ने तोड़ने का आदेश दे दिया है. बियाडा ने इस सूता मिल परिसर के 7 एकड़ इंजीनियरिंग कॉलेज को और 1 एकड़ बिजली विभाग को दे दिया है. मजदूरों की मांग है कि उनके बकाया वेतन का भुगतान कर दिया जाए. मजदूर संघ के कादिर हुसैन कहते हैं कि “इसे हमने अपने खून-पसीने से सींचा है, हम मजदूरों के हक़ के लिए लड़ रहे हैं. हम मर जाएंगे पर इस मिल को तोड़ने नहीं देंगे”.
इस मिल के एकाउंटेंट संजय यादव संघर्ष करते-करते हताश हो गए हैं. उन्होंने बताया कि “सारे नेता झूठे आश्वासन देकर चले गए पर कुछ हुआ नहीं”.
जब यह मिल बंद हुई उस समय 537 मजदूरों के रोजगार भी बंद हो गए बल्कि इसके साथ-साथ उनके आशाओं और उम्मीदों पर भी तुषारापात हो गया. अब लगभग 350 मजदूर सुनहले सपनों के लिए संघर्षरत हैं. “जब 1982 में मिल नया-नया खुला था तो लगता था कि ओह क्या ज़िंदगी हो जाएगी, लेकिन सब बर्बाद कर दिया, अगर किसी और राज्य में होते तो ऐसा होता?” मजदूर संघर्ष संघ के सचिव लाल मोहम्मद मियाँ बकाए पैसे की आस में ऐसा बोलते हुए भावुक हो जाते हैं!
पुष्पम प्रिया चौधरी ने बिहार सरकार की औधोगिक नीति और उनके नीयत पर हमला बोलते हुए कहा कि “बिहार के औद्योगिक पतन की बेशर्म विद्रूपता देखनी हो तो सीवान के टेक्स्टायल ‘स्पिनिंग मिल की “हत्या” जाकर देखिए, जहाँ सड़ चुकी स्पिंडल्स में आसाम की रुई अभी तक फँसी है! 17 एकड़ ज़मीन वाली मिल ज़मींदोज़ होने के कगार पे है, 537 श्रमिक परिवार लुट गए, मशीनें चोरी हो गयी, सरकार ने 13 लाख में पैसे ले-दे कर मिल की छत तक बेच दी”.
सरकारी लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के काले कारनामों में मजदूरों का वेतन उलझ कर रह गया है. बकाया वेतन से संबद्ध फाइल उद्योग विभाग से वित्त विभाग और वित्त विभाग से वित्त मंत्री के दफ्तरों के चक्कर काट रहा है पर अब तक समाधान नहीं हो पाया है. “सभी नेताओं ने वायदा किया पर किसी ने इस मुद्दे को उठाया नहीं” हताशा व्यक्त करते हुए संजय यादव ने कहा.
बिहार सरकार उधोग के लिए जमीन का रोना रोती रहती है. इसपर प्लुरल्स की प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी ने कहा कि “पटना में बैठकर “उद्योग के लिए ‘उपजाऊ’ बिहार में ज़मीन नहीं है” का खटराग अलापने वाली सरकार ने ने तो सिर्फ़ मिल की ज़मीन कॉलेज के नाम कर दी, बल्कि माननीय ने वहीं से रिमोट दबाकर उसकी शिलालेख भी खुदवा दी (जो चोरी-छुपे रात में अधिकारी लगा कर भाग खड़े हुए)! रोज़गार छिन गए श्रमिकों की ज़िंदगी तो डूब ही चुकी, उनका दिल भी टूट गया है. वे जीते-जी मिल की ज़मीन जाने नहीं देंगे की क़सम खाए बैठे हैं और आए दिन बुलडोजर के सामने सो जाते है”. वायदा तो यह था कि लोक-कल्याणकारी व्यवस्था होगी जिसके समाजवादी ढांचे में मजदूरों-कामगारों के हितों की प्राथमिकता होगी पर यंहा तो सरकार भू माफ़िया की भूमिका में आ गई है.
बिहार में प्लुरल्स पार्टी की मुख्यमंत्री उम्मीदवार पुष्पम प्रिया चौधरी ने संघर्ष समिति के सचिव लाल मोहम्मद को कहा कि “संघर्ष और धैर्य अब सिर्फ़ चार महीने का है, शिलालेख ज़मींदोज़ होगा, मिल नहीं! ‘फ़ाइबर टू यार्न’ मिल को छोड़िए, आपको पूरा टेक्स्टायल पार्क बना कर देंगे, ज़िंदगी वही होगी जो आपने सोचा था”.अपने हक के लिए संघर्षरत हताश मजदूरों के लिए यह उम्मीद की एक किरण है.