HomeUttar Pradeshदेव भाषा संस्कृत में बसती है हमारी सभ्यता- डा. सत्यप्रकाश मिश्र

देव भाषा संस्कृत में बसती है हमारी सभ्यता- डा. सत्यप्रकाश मिश्र

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शिवरतन कुमार गुप्ता
महराजगंज
१.आदि काल में संस्कृत हमारी मातृ भाषा रही,किन्तु पाश्चात्य सभ्यता ने इसकी विशेषता को छिन्न-भिन्न कर दिया।
२.हिन्दू धर्म ग्रन्थ की रचना संस्कृत में ही हुई हैं।
३.संस्कृत भाषा में सनातन धर्म की संस्कृति,सभ्यता एवं परम्परा खुद ब खुद बसती है।
४.पूरे भारत में यू.पी.ही इसके उत्थान के लिए किया सराहनीय पहल।
५.आज भी थोड़ी सी अध्ययन कर (मात्र 20 घण्टे) हम अच्छी तरह से संस्कृत को सिख सकते है।
६.संस्कृत सदियों पूर्व से हमारी सभ्यता एवं मातृ भाषा रही है।हमारे सभी धर्म ग्रन्थ की रचना संस्कृत में ही की गई है।जिस कारण इसको देव भाषा भी कहते हैं।लेकिन आज भारत में तेजी से पाँव पसार रहा पाश्चात्य देशों की सभ्यता ने संस्कृत को हम सबसे कोसों दूर करता जा रहा है।आज इनके बचाव,विकास एवं पुनरुत्थान की अहम जरूरत है।वरना हम सबकी सभ्यता का भी लोप हो सकता है….।
उक्त बातें  उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम् लखनऊ के महराजगंज जिला प्रमुख डा. सत्यप्रकाश मिश्र ने खुटहा बाजार स्थित टैगोर इण्टरमीडिएट कॉलेज में संस्कृत की विशिष्टता,इसके स्वरूप एवं पहचान पर आयोजित कार्यक्रम में अपनी ब्याख्यान प्रस्तुत कर रहे थे।
डा. सत्यप्रकाश मिश्र  ने कहा की संस्कृत आदि काल से हमारी मातृ भाषा/देव भाषा ही नही रही है,बल्कि इसकी एक एक शब्द कोष में हमारी सभ्यता झलकती है।आज कोई संस्कृत को पढ़ना नहीं चाहता,लेकिन जबकि उसको यह नहीं पता की हमारे चार वेद (यजुर्वेद,अथर्वेद,सामवेद और ऋग्वेद) सहित छः शास्त्र और अट्ठारह महापुराणों की भी रचना इसी देव भाषा में ही की गई।श्रीमद्भगवद्गीता और महाभारत के आलावा रामायण जैसे काब्य ग्रन्थ की भी रचना इसी भाषा में लिखी गई है।महाराज विक्रमादित्य के शासन काल में सभी कार्य एवं बोलचाल संस्कृत में ही रही है।लेकिन आज हम सब पर पाश्चात्य देशों की सभ्यता हावी होने की वजह से जहां हम अपनी मातृ भाषा भूलते जा रहे हैं वहीं सभ्यता भी पीछे छूटती जा रही है।
संतकबीरनगर के मुख्य प्रशिक्षक श्री यज्ञनारायण पाण्डेय ने कहा की हमारे धर्मग्रन्थों में जन्मभूमि की जिस तरह से माता का दर्जा दिया गया है उसी तरह संस्कृत को देव वाणी कहा गया है।इसको संरक्षित करने के लिए विद्यार्थियों को उत्सुक होना होगा।आज भारत में करीब करीब 17 भाषाएँ बोली जाती हैं,लेकिन लोग देववाणी से दूर होते जा रहे हैं।जिस कारण हम सबके बीच से सभ्यता भी बिलुप्त होती ज रही है।इसके मात्र 20 घण्टे के परिश्रम मात्र से शुद्ध संस्कृत का अध्ययन आसानी से किया जा सकता है।किन्तु इसके लिए एकाग्रता और जिज्ञासा की अहम जरूरत है।सहायक प्रमुख  दिवाकर मणि त्रिपाठी  ने कॉलेज प्रशासन को संस्कृत की अध्यापन कराए जाने पर जोर दिया।और कहा की सुबह शाम की ईश प्रार्थना और दोपहर  (भोजनावकाश) की प्रार्थना भी संस्कृत में करायी जाए।यह कार्यक्रम (उत्तर प्रदेश संस्कृत संस्थानम् लखनऊ) उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा संस्कृत भाषा को विकास देने एवं इसके संरक्षण पर संचालित किया जा रहा है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ खुटहा बाजार के ग्रामप्रधान प्रतिनिधि मुख्यअतिथि श्री मख्खु प्रसाद ने  माँ सरस्वती के चित्र के सम्मुख दिप प्रज्वलन एवं माल्यार्पण कर किया तथा संचालन  टैगोर इंटरमीडिएट कॉलेज खुटहा बाजार के डायरेक्टर सतीशचन्द्र मिश्रा ने किया।जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता कॉलेज के चीफ मैनेजर  कौशल किशोर चौरसिया ने किया।
इस मौके पर फुलेश्वर प्रसाद,घनश्याम राव,दिलीप कुमार,सुरेश प्रसाद,सत्यनारायण वर्मा,तृषणा शाही,नीलम,रामनरायन सपन सहित कॉलेज के सभी अध्यापक बन्धु एवं छात्र छात्राएं मौजूद रहे।यह कार्यक्रम कॉलेज में पूरे एक पखवारे तक चलेगा।कार्यक्रम के अंत में कौशल किशोर चौरसिया ने प्रशिक्षक बंधुओं एवं मुख्य अतिथि को हार्दिक आभार प्रकट किया।
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