महराजगंज जिले के ग्रामीण क्षेत्र के खुटहा बाजार का श्री ओंकारेश्वर महादेव मंदिर शिव भक्तों की आस्था,विश्वास और मनोकामनापूर्ति का प्रमुख केंद्र है।यहां गवइं इलाकों से आने वाले शिव भक्तों की अपार भीड़ भगवान श्री ओंकारेश्वर महादेव के शिवलिंग पर जलाभिषेक कर जीवन धन्य करती है।सावन के महीने में तो यहां शिवभक्तों का रेला लगा रहता है। भक्तगण श्री ओंकारेश्वर महादेव को जलाभिषेक कर मन्नतें मांगते हैं। भगवान श्री ओंकारेश्वर महादेव मंदिर के निर्माण की कहानी क्षेत्र के महान तपस्वी बाबा निरकेवल दास जी से जुड़ी है।
भगवान श्री ओंकारेश्वर महादेव मंदिर के बारे में बताया जाता है की पूर्व में हैजा,तपेदिक,मिर्गी,चेचक जैसी तमाम जानलेवा बीमारियां तथा बाढ़ एवं आग और सुखा जैसी दैवी आपदाएं आती रहती थीं।जिससे आमज नमानस के साथ खुटहा बाजार के महान तपस्वी बाबा निरकेवल दास जी के भी माथे पर चिंता की लकीरें साफ दिखती थीं।और सब लोगों ने इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए युक्ति तलासते रहे,किन्तु असफल ही रहे। लेकिन एक वक्त आया जब खुद बाबा निरकेवल दास जी ने मंगलवार को नगर भ्रमण के दौरान एक जगह आ कर रुक गए।कुछ देर पश्चात उन्होंने गांव वालों से यहीं (रुके हुए स्थान पर) भगवान श्री ओंकारेश्वर महादेव की भव्य मंदिर की निर्माण कराने की बात (आज्ञा स्वरूप) कही,जिससे समाज का भला हो सके।
बाबा जी का दिशानिर्देश मिलते ही ग्रामीणों ने धन जुटाना शुरू कर दिया और बाबा जी के निर्देशन में वर्ष 1958-59 के दरम्यान निर्माण कार्य शुरू हुआ जो अनवरत सात वर्षों तक चलता रहा।मंदिर के गर्भ गृह में स्थापित शिवलिंग की प्रतिमा को बाबा निरकेवल दास जी खुद चित्रकूट धाम से लाए थे,जिसकी प्राण प्रतिष्ठा भी उन्ही की दिशानिर्देशन में सम्पूर्ण हुआ और इतना ही नहीं वे खुद ही कार्यक्रम के मुख्य यजमान और निर्देशक भी रहे।
यहाँ शिवलिंग की स्थापना बाद बाबा जी ने कहा की भगवान श्री ओंकारेश्वर महादेव जी को जलार्पण मात्र से ही सारी ब्याधियों, रोग, शोक, आपदा,बिपदा,दुख,द्रद्रीता,गरीबी
भक्त यहां शक्ति की भी उपासना करते हैं,मंदिर के ठीक बगल में समय माता जी की भव्य प्राचीन मंदिर है,जहां भक्तगण पूजन,अर्चन कर अपना जीवन सफल बनाते है।मंदिर और बाबा जी के बारे में तमाम बुजुर्ग बुद्धिजन बताते हैं की मंदिर के निर्माण वक्त एक मजदुर मंदिर की गुमब्बज पर स्वर्ण कलश रखते वक्त गिर पड़ा और लोगों ने सोच लिया की उक्त मजदूर अब तो दुनिया से रुखसत हो चला। लेकिन तब तक बाबा निरकेवल दास जी आ पहुंचे और उस मजदूर की हाथ पकड़ कर सिर्फ इतना ही कहा की “चलो उठो कब तक सोओगे”, बस इतनी सी बात सुन कर वह मजदूर उठ कर बैठ गया और पुनः काम पर लग गया।ग्रामीणों को समझाते हुए बाबा जी ने कहा की जो भक्त सोमवार को श्री ओंकारेश्वर महादेव को जल अर्पित कर समय माता को कपूर की भस्माहुति देगा उसकी सारी मनोकामनाओं की ,सिद्धि एवं पूर्ति होगी। वैसे सावन में यहां खुद भगवान श्रीओंकारेश्वर महादेव अपने भक्तों की कल्याण करने हेतु मौजूद रहेंगे।
मंदिर में होती है प्रवचन –
मंदिर के मुख्य पुजारी अनिरुद्ध गिरी जी महराज के मुताबिक शिव मंदिर युवा शक्ति की ओर से हर सोमवार को मंदिर परिसर में भजन गायकों की टोली भजन का आयोजन करती है जो पूरे दिन अनवरत चलता रहता है,और सप्ताह के हर बुधवार की शाम करीब 8 बजे श्रीरामचरित मानस का पाठ तथा हर शनिवार को कीर्तन का आयोजन होता है।मंदिर की पूरी देखरेख शिव मंदिर युवा शक्ति करती है।
मंदिर से जुड़ा है बिरन्दे मान सरोवर –
कहा जाता है की अबसे करीब 175 वर्ष पूर्व इस सरोवर से सोमवार (साप्ताहिक बाजार का दिन) को नौका (नाव) पर वर्तन निकला करता था, जिसका उपयोग बाजार आने वाले ब्यापारी खाना पकाने के लिए करते थे।लेकिन इस बर्तनों से भरी नौका पर एक ब्यक्ति की कुदृष्टि पड़ गई,और वह उन बर्तनों को बोरे में समेट लेकर जाने लगा।जैसे ही वह दो चार कदम आगे बढ़ा की अंधा हो गया और वह माता रानी समय को पुकारने लगा,तथा अपनी किए गलती का वहीं बीच सरोवर में पश्चाताप करने लगा। कुछ देर पश्चात उसकी रोशनी लौट आई और वह ब्यक्ति उन चोरी किए बर्तनों को नौका (नाव) को वापस कर अपने घर लौट गया।बताया जाता है की तभी से बर्तनों के निकलने की सिलसिला भी बंद हो गई।
दर्जनों नथ पहनी मछलियां हैं सरोवर में –
बताया जाता है की इस बिरन्दे मान सरोवर में एक दो नहीं बल्कि दर्जनों नथ पहनी मछलियां बिचरण करती हैं।जो केवल साल के दोनो नवरात्रों में भाग्यवान लोगों को ही दिख जाती हैं।यह भी बताया जाता रहा है की इस सरोवर में एक दो नहीं बल्कि सात जलकुण्ड भी हैं।
बाबा जी ने ही खुदवाया था सरोवर –
सरोवर की खुदाई के बारे में बताया जाता है की वर्ष 1940-41 के दरम्यान भयंकर सुखा पड़ा की पशु पंक्षी मानव पानी के लिए दम तोड़ने लगे।यह देख बाबा निरकेवल दास जी घबरा गए,और आनन फानन में सरोवर की खुदाई कराने का फैसला किया।ग्रामीणों के अथक प्रयास से बिरन्दे सरोवर की खुदाई सम्पूर्ण हुई।सरोवर को कभी न सूखने का बरदान बाबा निरकेवल दास जी ने दे डाला।
खुदाई के दौरान लगी थी ब्रह्मआग –
जब सरोवर की खुदाई होनी थी तो धन की जरूरत पड़ी,जिसके लिए बाबा निरकेवल दास जी और इनके संत मित्र बाबा मलंग शाह जी,दादा मियां और बाबा लंगड़ दास* जी चंदा इकट्ठा करने निकल पड़े।की उसी दौरान खुटहा बाजार के एक पुराने सेठ जी ने अहंकार बस कुछ कह दिया और वह बात संतों को नागवार गुजरी।जिस पर संतों ने “ऐसे धनियों के गांव में ब्रह्मआग लग जाए” का श्राप दे दिया।बताया जाता है की संतगण अभी अपनी कुटी पर पहुंचे भी नहीं थे की पूरी खुटहा बाजार धु धु कर जलने लगी और उस आग की लपटों में उस सेठ का 17 सौ मन सरसो,17 सौ मन तिशि,17 सौ मन गुण और चांदी के रुपयों से भरा तिजोरी जल कर राख हो गया था।बुजुर्गजन बताते हैं की यह ब्रह्मआग करीब सप्ताह भर धु धु कर जलती रही।जिसमें केवल धन का विनास हुआ।