सड़क दुर्घटना से संबंधित एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि असाधारण सावधानी बरत कर वाहनों की टक्कर से बचने में सिर्फ विफल रहना अपने आप में लापरवाही नहीं है. कोर्ट ने कहा कि जिस व्यक्ति पर सड़क दुर्घटना में योगदान के लिए लापरवाही का आरोप लगाया जा रहा है उसमें उसकी किसी चूक की भूमिका तो होनी चाहिए. न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति वी रामसुब्रमण्यम की पीठ ने कर्नाटक हाईकोर्ट के एक फैसले के खिलाफ एक महिला और उनके नाबालिग बच्चों की अपील पर अपने फैसले में यह टिप्पणी की.
हाईकोर्ट ने कहा था कि महिला के दिवंगत पति भी लापरवाही के दोषी हैं. ट्रक से टक्कर में संलिप्त कार इस महिला के पति चला रहे थे और वह भी लापरवाही में योगदान के दोषी हैं. अदालत ने कहा कि ऐसी स्थिति में महिला और उनके नाबालिग बच्चे मुआवजे की निर्धारित राशि के केवल 50 प्रतिशत के हकदार हैं. हालांकि, शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय का निर्णय पलटते हुए कहा कि कुछ असाधारण सावधानी बरतकर टक्कर से बचने में नाकामी अपने आप में लापरवाही नहीं है.
पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का निष्कर्ष ऐसे किसी सबूत पर आधारित नहीं है. यह महज एक अनुमान है कि यदि कार का चालक सतर्क होता और यातायात नियमों का पालन करते हुए वाहन सावधानीपूर्वक चलाता, तो यह दुर्घटना नहीं होती. पीठ ने छह अक्टूबर के अपने आदेश में कहा कि यह जताने के लिए रिकॉर्ड में कुछ भी नहीं था कि कार का चालक मध्यम गति से गाड़ी नहीं चला रहा था या उसने यातायात नियमों का पालन नहीं किया था. इसके विपरीत, उच्च न्यायालय का मानना है कि यदि ट्रक को राजमार्ग पर खड़ा नहीं किया गया होता तो कार की गति तेज होने पर भी दुर्घटना नहीं होती.
पीठ ने अपील स्वीकार करते हुए उच्च न्यायालय के फैसले को संशोधित किया और नौ प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज के साथ कुल 50,89,96 रुपये के मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया. इस मामले में 10 फरवरी, 2011 को मृतक की कार एक ट्रक से उस समय सामने से टकरा गयी जब उसके चालक ने किसी संकेत के बगैर अपना वाहन अचानक ही रोक दिया था. इस हादसे में कार चला रहे मृतक को गंभीर चोटें लगीं थीं और उसकी मौके पर ही मृत्यु हो गयी थी. याचिकाकर्ताओं ने ट्रक चालक की लापरवाही के कारण यह दुर्घटना होने का दावा करते हुए मोटर दुर्घटना दावा अधिकरण में 54,10,000 रुपये के मुआवजे का दावा किया था.