उत्तर प्रदेश पुलिस के जवान आज बॉर्डर स्कीम, साप्ताहिक अवकाश, ड्यूटी के घंटे तय करने और ग्रेड पे बढ़ाकर 2800 करने के साथ ही अन्य माँगों को लेकर ट्विटर पर सक्रिय नजर आए. दरअसल पुलिस के ये जवान लम्बें समय से विवादित ‘बॉर्डर स्कीम’ हटाने की मांग कर रहे है. इन जवानों का कहना है कि इससे वे मुस्तैदी से ड्यूटी करने के साथ ही अपने परिवार के साथ भी समय बिता सकेंगे.
ग़ौरतलब है कि साल 2010 में तत्कालीन मायावती सरकार ने इसे लागू किया था. जिसके तहत किसी कॉन्स्टेबल, हेड कॉन्स्टेबल, दरोगा या इंस्पेक्टर को अपने गृह जनपद और उसकी सीमा से पड़ोसी जिले में तैनाती नहीं मिल सकती है.
वहीं नाम न छापने की शर्त पर लखनऊ में तैनात एक यूपी पुलिस के जवान ने बताया कि हमारी ड्यूटी का कोई तय समय नहीं है. साप्ताहिक अवकाश भी नहीं मिल पाता है. वेतन भी उतना ही है जिससे पारिवारिक ज़रूरतें मुश्किल से ही पूरी हो पाती हैं. ऐसे में हमारा निवेदन है कि राज्य सरकार पुलिस के जवानों की इन बुनियादी ज़रूरतों पर भी ध्यान दे.
यूपी पुलिस के इन जवानों का कहना है कि बॉर्डर स्कीम को लेकर तर्क दिया जाता है कि घर के नजदीक पोस्टिंग मिलने से हम कानून-व्यवस्था प्रभावित कर सकते हैं. जबकि ऐसा नहीं है राजस्थान इसका बेहतरीन उदाहरण है जहां जवानों को गृह जनपद में भी तैनाती मिलती है, लेकिन वहां कानून-व्यवस्था को प्रभावित करने सम्बंधी कोई समस्या सामने नहीं आई. तो हमारे साथ ही ऐसा क्यों? जबकि आईपीएस अधिकारियों को यह बात लागू नहीं होती, उन्हें गृह और पड़ोसी जिलों में भी तैनाती की छूट है.
पूर्व आईपीएस अधिकारी अमिताभ ठाकुर ने भी यूपी पुलिस के जवानों की इन माँगों का समर्थन किया है. उन्होंने एक वीडियो ट्वीट करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश के अधीनस्थ पुलिसकर्मियों के लिए बॉर्डर स्कीम एक अभिशाप की तरह है. जहाँ आईपीएस अफ़सर, पीपीएस अफसर अपने निवास स्थान पर रह सकते हैं/जन्म स्थान पर रह सकते हैं, वहीं बॉर्डर स्कीम के कारण सिपाही और दरोगा काफी दूर तैनात होते हैं. इससे उनकी परेशानियाँ बढ़ी रहती है. अनावश्यक रूप से स्कीम लागू करके उत्तर प्रदेश पुलिस के जवानों को इससे प्रताड़ित होने के अलावा कोई लाभ नहीं हो रहा है. साथ ही उन्होंने बॉर्डर स्कीम समाप्त करने की मांग की है.
आपको बता दें कि विवादित बॉर्डर स्कीम को साल 2010 में मायावती सरकार के कार्यकाल के दौरान लागू किया गया था……हालंकि मार्च 2012 में समाजवादी पार्टी की सरकार बनने के बाद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इसे हटा दिया था, लेकिन 2014 में बॉर्डर स्कीम एक बार फिर से लागू कर दी गई. इसके बाद से ही पुलिसकर्मी इस स्कीम को हटाने की मांग करते आ रहे हैं.