Vijay Mallya को ब्रिटेन हाई कोर्ट से कड़ा झटका, 28 दिन में भेजा जा सकता है भारत

शराब कारोबारी विजय माल्या (Vijay Mallya) को एक बार फिर ब्रिटेन (Britain) की अदालत से करारा झटका लगा है. ब्रिटेन के हाईकोर्ट ने माल्या की भारत के प्रत्यर्पण के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में अपील करने की इजाजत वाली याचिका को खारिज कर दिया है. सूत्रों के मुताबिक इस याचिका के खारिज हो जाने के बाद माल्या के पास कोई रास्ता नहीं बचा है और उसे 28 दिनों में भारत को सौंपा जा सकता है.

प्राप्त जानकारी के अनुसार अब ब्रिटेन के होम सेक्रेटरी को माल्या के प्रत्यर्पण के दस्तावेज पर 28 दिन में हस्ताक्षर करना होगा. ये हस्ताक्षर हो जाने के बाद ब्रिटेन का संबंधित विभाग भारत के साथ माल्या के प्रत्यर्पण के संबंध में काम करेगा. बता दें कि ब्रिटेन के उच्च न्यायालय ने पिछले माह विजय माल्या की प्रत्यर्पण के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया था.

माल्या के लिये यह बड़ा झटका है, क्योंकि बंद हो चुकी किंगफिशर एयरलाइन्स (Kinghfisher Airlines) के कर्ज से संबंधित धोखाधड़ी और धनशोधन के मामले (Money Laundering Case) में भारत प्रत्यर्पण के आदेश के खिलाफ उसकी अपील हाई कोर्ट में पिछले महीने ही खारिज हो गई थी.64 साल के माल्या के पास हाई कोर्ट के फैसले के बाद से इससे भी ऊंची अदालत में जाने की अनुमति मांगने का आवेदन दाखिल करने के लिए 20 अप्रैल से लेकर 14 दिन का समय था. हाई कोर्ट ने ब्रिटेन के गृह मंत्री द्वारा प्रमाणित वेस्टमिंस्टर मजिस्ट्रेट अदालत के प्रत्यर्पण आदेश के खिलाफ माल्या की अपील खारिज कर दी थी.

ब्रिटेन की क्राउन प्रॉसिक्यूशन सर्विस (सीपीएस) ने कहा कि माल्या की विधि के प्रश्न (प्वाइंट ऑफ लॉ) को प्रमाणित करने की अपील सभी तीनों आधारों पर खारिज हो गयी, जिनमें मौखिक दलीलों पर सुनवाई, तैयार किये गये सवालों पर प्रमाणपत्र देना और सुप्रीम कोर्ट में अपील के लिए अनुमति देना शामिल हैं.

अपील के लिये आवेदन पर भारत सरकार की प्रतिक्रिया इस सप्ताह की शुरूआत में पेश की जा चुकी है. इससे पहले विजय माल्या ने गुरुवार को सरकार से 100 प्रतिशत कर्ज चुकाने के उनके प्रस्ताव को स्वीकार करने के लिए कहा. साथ ही उन्होंने सरकार से उनके खिलाफ मामले बंद करने की अपील भी की.

माल्या ने हाल में घोषित 20 लाख करोड़ रुपये के आर्थिक पैकेज पर भारत सरकार को बधाई देते हुए अफसोस जताया कि उनके बकाया चुकाने के प्रस्तावों को बार-बार नजरअंदाज किया गया.

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