“बिहार में खाद्य प्रसंस्करण के क्षेत्र में बहुत अधिक संभावनाएं हैं. मैं बिहार को इस क्षेत्र में सर्वोत्तम स्थान दिलाऊंगी” यह बात बिहार में प्लुरल्स पार्टी की मुख्यमंत्री उम्मीदवार पुष्पम प्रिया चौधरी कह रही थी. बिहार में अलग-अलग केंद्रों पर घूमने के बाद उन्होंने यह कहा कि इस राज्य में केला, मखाना, अमरूद, सिंघाड़ा और सब्जियों को लेकर अगर सरकारें सकारात्मक रहती तो बहुत अधिक संख्या में रोजगार के सृजन होने के साथ साथ किसानों की आय में सकारात्मक वृद्धि होती परंतु सरकारों ने इस दिशा में कुछ भी नहीं किया.
केला उत्पादक क्षेत्रों को देखने के बाद पुष्पम प्रिया चौधरी ने कहा कि “गंगा के उत्तरी तट के ज़िले केला उत्पादन में पारम्परिक रूप से आगे रहे हैं. अपार क्षमता के बावजूद तमिलनाडु, गुजरात जैसे राज्य भी बिहार से 200 प्रतिशत अधिक केला उत्पादन करते हैं क्योंकि बनाना स्मॉल इंडस्ट्री उनके साथ है. प्रॉडक्टिविटी, प्रोडक्शन एरिया, विविधता में इज़ाफ़ा, नए जॉब और लोकल वेफ़र एंड फ़्रूट इंडस्ट्री से लिंकेज पर बिहार में यह कल्पना करना भी बेमानी है”. उन्होंने आगे कहा कि “बिहार में 2020-30 में एक नया “बनाना रिवोल्यूशन” करना है.”
वैशाली के रामदौली, बिदुपुर में घूमने के बाद सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि “हर भारतीय थाली में बिहारी व्यंजन” तो पहुँचा नहीं लेकिन हज़ारों स्टार्ट-अप ही फाइनेंस कर देते तो केले का चिप्स दुनियाँ के कोने-कोने में पहुँच जाता, पर ऐसा करने में भी सरकार असफल रही. जब “हर भारतीय की थाली में बिहारी व्यंजन” तो पहुँचा नहीं तो हर फ्रिज में ज़न्दाहा, वैशाली के प्रसिद्ध अमरूद के फल और जूस तो इनसे पहुँचने से रहे! किसान तो इतना भर चाह रहे कि हाजीपुर के केले और मुज़फ़्फ़रपुर की लीची की तरह ही नाम हो जाय और सही दाम मिल जाय. ग़रीबों को न्याय और आवाज़ देने का दंभ भरने वाले न दाम दिला पाये, न कृषि का दर्जा और न ही एक अदद प्रोसेसिंग प्लांट तक डाल सके” अपनी पार्टी की कार्ययोजना के बारे में बताया कि उनकी पार्टी की सरकार बनने के बाद 2020-30 वैशाली के पान, केले और अमरूद का भी दशक बनेगा”.
उन्होंने सब्जियों की सही कीमत किसानों को न मिलने पर बोलते हुए कहा कि “मर्यादा पुरुषोत्तम भी होते तो रो देते, आपने उनकी प्रिय ‘रामतोरई’ को ‘टके सेर भाजी’ कर दिया! वैशाली के किसान भिंडी-लौकी के 1 रुपये किलो पाएँगे तो ‘हर भारतीय थाली में बिहारी व्यंजन’ कैसे हो”.
जमुई में सब्जी उत्पादकों से मिलने के बाद उन्होंने बताया कि “बिहार के अन्य हिस्सों की तरह जमुई में भी असली गोल्डमाइन उसके खेत ही हैं परंतु यहाँ सब्ज़ियों की खेती की बेहतरीन दुनियाँ है. नीम नवादा, जमुई में 500 एकड़ में सब्ज़ियों की शानदार खेती है, सरदार प्रसाद जी, प्रियरंजन जी, सुशील जी, उदय जी जैसे 200 उत्साही किसान हैं, लेकिन न ज़मीन पर हक़, न सरकार से सहायता और बाक़ी बिहार की तरह जमुई में भी स्टोरेज और मार्केट लिंकेज नदारद है”. उन्होंने कहा कि जमुई 2020-30 बिहार में कैश इकॉनोमी वाली सब्ज़ियों का ग्रीन-कॉरिडोर बने तो बिहार में सही बदलाव संभव है.
मुस्तफापुर, नालंदा के सिंघाड़ा (पानीफल) किसान विक्रांत कुमार से मिलकर उनकी समस्याओं पर चर्चा करने के बाद बताया कि “बिहार की सदियों पुरानी कहानी है. वही सब समस्याएँ और खेती एक अवसर नहीं बल्कि हमेशा एक मजबूरी ही है”.
उन्होंने बताया कि गांव में 50 घर सिंघाड़ा खेती में लगे हैं लेकिन पट्टे पे पोखरा लेने वाले को किसान नहीं माना जाता है इस कारण किसानों को मिलने वाली सुविधाओं से वंचित हैं.
सिंघाड़ा स्टोरेज की बड़ी समस्या, फसल निकालने पर तुरंत ख़राब हो जाता है, इसीलिए तुरंत बेच देना पड़ता है, इसलिये अच्छा दाम नहीं मिलता और प्रोसेसिंग, पैकेजिंग नहीं कर पाते. सरकार से न तो लोन न तो कोई मुआवज़ा . महाजन से 50-60% पर लोन लेना पड़ता है. कई बार नुक़सान होने पर जमीन बेच कर क़र्ज़ चुकाना पड़ता है.
कैमूर क्षेत्र में पीले तरबूज़ की ऑर्गेनिक फ़ार्मिंग को बिहारी कृषि उद्यमियों के विजन का परिणाम है बताते हुए कहा कि “बस इंटरनेशनल सर्टिफिकेशन और मार्केट लिंकेज चाहिये. इसी से देश में एग्रीकल्चर को मजबूरी मानने के बजाय खेती को उद्योग वाली सुविधाएँ और सम्मान से ही इंडस्ट्रियल रिवोल्यूशन का ग्राउंड तैयार होगा.
बिहार में मिर्ची भी खाद्य प्रसंकरण क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभा सकता है. “बड़ा एरिया मिल जाय और सरकार प्रोसेसिंग प्लांट और मार्केट लेकर जुट जाय, तब तो चाँद-तारा तोड़ के ला देंगे” यह बात धान-गन्ना बहुल चंपारण क्षेत्र में मिर्च और आलू की असंभव जैसी प्रोडक्टिविटी पाने वाले सागर चूडामण के मोहम्मद जमालुद्दीन प्लुरल्स की प्रेसिडेंट पुष्पम प्रिया चौधरी से कह रहे थे. प्लुरल्स की प्रेसिडेंट ने बताया कि “ये जीनियस किसान ही नये दशक में नये बिहार के ब्रांड एम्बेसेडर बनेंगे”. मोहम्मद जमालुद्दीन मिर्च की खेती के जीनियस हैं. बिहार सरकार भले न पूछे, गुजरात जैसे राज्य उनके खेत के चक्कर लगा रहे. अपनी 2.5 गुना अधिक उत्पादन की टेकनीक, लोकल प्रोसेसिंग प्लांट और ग्लोबल मार्केट लिंकेज के साथ वे 2020-30 में बिहार में ‘चिली रिवोल्यूशन’ लाने को तैयार हैं.
बिहार में उपजाया जाने वाला मखाना खाद्य प्रसंकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है. दहियारगंज, कटिहार के मखाना किसान शेख़ आईनुल और मोहम्मद ख़ुर्शीद लॉकडाउन के कारण खेती की लागत भी वसूल होने पर निश्चित नहीं हैं. पुष्पम प्रिया चौधरी ने कहा कि “इन क्षेत्रों में मखाना प्रोसेसिंग इंडस्ट्री दशकों पहले लग जाता तो कटिहार 250 पिछड़े ज़िलों में नहीं होता”.
“दीदी, आदत भ जाय छ…” पूर्णिया के हरदा में मखाना प्रोसेसिंग करती जमालपुर, दरभंगा की राधा हथेली जला देने वाले गरम मखाने को हाथ पर उलाती हैं! विदेशों में प्रदर्शनी की नहीं मखाना उद्योग को एडवांस्ड टेक्नॉलॉजी की ज़रूरत है” पुष्पम प्रिया चौधरी ने बताया.
प्लुरल्स की प्रेसिडेंट ने बताया कि सिर्फ़ विजन और विल पावर का गेम है, फिर बिहार की जीत तय है.