Bihar Assembly election 2020 : बिहार क्यों आईं है पुष्पम प्रिया चौधरी?

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women’s Day) के अवसर पर बिहार (Bihar) के राजनीतिक पटल पर एक नई राजनीतिक पार्टी के उदय की घोषणा हुई. पाटलिपुत्र (Pataliputra) के राजनीतिक गलियारों में हलचल थी, धनानंद का सिंहासन डोला था. पुष्पम प्रिया चौधरी ने भावी मुख्यमंत्री के तौर पर अपने नागरिकों के नाम एक पत्र लिखा था. बिहार के “पावर लॉर्डस” परेशान थे, हैरान थे कि लंदन में पढ़ने वाली सुश्री चौधरी बिहार क्यों आना चाहती है?

2018 और 2019 की बिहार की एंसेफलायटिस बुख़ार (Encephalitis Fever) ने, जिसमें सैंकड़ों बच्चों की मृत्यु हुई, उन्हें काफ़ी डिस्टर्ब किया. उस दौरान वे विकसित लोकतंत्रों के लिए बॉस्टन कन्सल्टिंग ग्रुप और एलएसई की पब्लिक-पॉलिसी के एक प्रॉजेक्ट पर काम कर रही थीं – बिहार में पब्लिक सर्विस और शासन की समस्याओं का आसानी से निराकरण हो सकता है. विकसित लोकतंत्रों की सरकारें अब ज़्यादा जटिल समस्याओं का समाधान कर रही हैं क्योंकि उन्होंने बुनियादी सेवाओं और शासन को बेहतर कर रखा है. अपने होम स्टेट की ठीक की जाने वाली समस्याओं से अवगत होते हुए दूसरे विकसित मुल्कों के लिए नीति निर्माण का काम करना उनके लिए नैतिक रूप से परेशान करने वाला था. बिहार के लिए कुछ न करने और उसे भ्रष्ट व अक्षम लोगों के हाथ में छोड़ देने के नैतिक बोझ के साथ वह जीना नहीं चाहती थी. वह मरने से पहले बिहार को अपने जीवन-काल में वैसा ही देखना चाहती थी इसलिए उन्होंने अपना सामान बांधा और अपनी मातृभूमि वापस आ गयी.

पुष्पम प्रिया चौधरी (Pushpam Priya Choudhary) अपनी उच्च शिक्षा यूनाइटेड किंग्डम (United Kingdom) में प्राप्त की जहाँ राजनीति, दर्शन और अर्थशास्त्र की विभिन्न विषय-वस्तुओं की पढ़ाई की. फिर ऐसी शिक्षा पा कर जब वह लंदन स्कूल ओफ़ एकनॉमिक्स (London School of Economics) के लिए बॉस्टन कन्सल्टिंग ग्रूप के साथ एक पब्लिक पॉलिसी प्रोजेक्ट पर काम कर रही थी तब उन्होंने महसूस किया कि पूरी दुनिया कितनी तेज़ी से आगे बढ़ रही है. पॉलिसी के निर्माण के लिए विभिन्न विषयों की योग्यता एक अहम भूमिका रखती है ताकि पॉलिसी साक्ष्य और गहन विश्लेषण पर आधारित हो. दुनिया भर की सरकारें पॉलिसी के असर को उसे लागू करने से पहले और बाद में गहनता से अध्ययन करती हैं क्योंकि पब्लिक और पब्लिक के पैसे दोनों का बहुत महत्व है और इसलिए दूसरी जगहों पर पब्लिक भी यह सुनिश्चित करती है कि सरकारें ऐसा करें. पुनर्वितरण (रीडिस्ट्रिब्यूशन) किसी भी पब्लिक पॉलिसी के केंद्र में होती है. बिहार की मुख्य समस्या फ़ंड की नहीं है बल्कि फ़ंड के दुरुपयोग, भ्रष्टाचार और अपने लोगों को ख़ुश करने की रही है.

उन्होंने आगे बताया कि हमारे पास सक्षम संस्थाओं तथा आधारभूत संरचनाओं का अभाव रहा है और निर्णय राजनीतिक वर्ग की मनमर्ज़ी से किए जाते हैं. उदाहरण के लिए, वर्तमान सरकार एक दिन जगी और उसने म्यूज़ीयम बनाने की सोची और बना भी डाला. वह पैसा जिसे तत्काल किफ़ायती आवास, प्राथमिक शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं या कृषि आधारित उद्योगों के लिए उपयोग किया जा सकता था, उसे एक बिल्डिंग बनाने के लिए ख़र्च किया जाना क्या एक असंवेदनशील सौदा नहीं कहा जाएगा? और ऐसा करके भी सरकार बच निकलती है क्योंकि वास्तव में कोई उनके कार्यकलाप पर पूछने वाला ही नहीं है (विपक्ष तो और चौपट है). बिहार के राजनेताओं को साक्ष्य-आधारित पॉलिसी बनाने का ज्ञान ही नहीं है. उनके लिए राजनीति व्यक्तिगत हमलों, अप्रासंगिक भाषणों और यथास्थिति बनाए रखने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है. मतलब कि लोगों को बेरोज़गार, अशिक्षित और ग़रीब बनाए रखा जाए ताकि वे बारंबार एक ही वादे कर के या ऐसे मुद्दे उछाल कर चुनाव जीतते रहें जिनसे लोगों की परेशान ज़िंदगी का कोई सरोकार न हो.

पुष्पम प्रिया चौधरी का कहना है कि ग़रीबी हटाना हर राजनीतिक दल के एजेंडे में पिछले 73 सालों से रहा है. वे अपनी बेमतलब की भाषण कला से हमारा मनोरंजन करते हैं और हम उन्हें ऐसा करने देते रहे हैं. लेकिन उनका काम हमारा मनोरंजन करना नहीं है. फिर इससे हमें क्या राहत मिलती है? दुनिया भर के अधिकतर देश जिनमें अलोकतांत्रिक देश भी शामिल हैं, वे सभी अब पॉलिसी निर्माण के उच्चतर स्तर पर पहुँच गए हैं. निस्सन्देह उनकी अपनी समस्याएँ हैं, लेकिन उन्होंने हमारी जैसी समस्याओं का दशकों पहले समाधान कर लिया है. दूसरी तरफ़, हम अभी तक व्यक्ति की उन बुनियादी ज़रूरतों से भी वंचित हैं जो जीवन-निर्वाह के लिए आवश्यक होती हैं. एक बिहारी के रूप में ऐसा महसूस करना असफलता का बोध कराता है. इस बात के बावजूद कि हम या आप बिहार या भारत के बाहर व्यक्तिगत रूप से ख़ूब सफल हों, एक बिहारी के रूप में हम सभी असफल हैं. और हम इस ज़िम्मेदारी से भाग नहीं सकते. इसी बात से परेशान बदहाल बिहार को बेहतरीन बिहार में बदलने हेतु वह बिहार आईं है.

पुष्पम प्रिया चौधरी 2019 में बस एक लक्ष्य के साथ लौटीं – एक बेहतर बिहार बनाया जाए और अक्षम राजनीतिक व्यवस्था को बदला जाए. जिन लोगों के सामने वे खड़ी हैं वे हर जगह हैं – “जब मैं राजनीतिक वर्ग की बात करती हूँ तो मेरा मतलब सिर्फ़ राजनीतिज्ञों से नहीं होता, बल्कि इसका अर्थ भ्रष्टाचार के समूचे संरक्षक-मुवक्किल नेटवर्क (patron-client network) से है. वे सभी जगह हैं, अलग-अलग कामकाज में. लोग जो अपने कांटैक्ट के पावर का दुरुपयोग करते हैं.” पुष्पम प्रिया चौधरी का कहना है कि वह यह जानती हैं क्योंकि सिस्टम को दशकों तक जान-बूझ कर बर्बाद किया गया है और इसलिए भ्रष्टाचारियों का नेटवर्क काफ़ी मज़बूत है. “लेकिन इसे ठीक करना असम्भव नहीं है, उतना असम्भव तो नहीं ही है जितना चन्द्रमा पर जाना या मरूस्थल में बारिश कराना, वह भी आज हो गया है. जीवन भी मुश्किल ही है, लेकिन हम जीना तो नहीं छोड़ देते हैं ना? लोग सरकारों की नालायकी और अहंकार के कारण मरना डिज़र्व नहीं करते.

वह बताती हैं कि बिहार मेरा है और मेरे जैसे लोगों का है, और एक बिहारी के रूप में मैं इसे आगे और बर्बाद नहीं होने दूँगी चाहे इसके लिए जो करना पड़े. और फिर इस बात का कोई सबूत भी तो नहीं है कि यह नहीं बदला जा सकता, उल्टे इस बात का सबूत ज़रूर है कि इन राजनीतिज्ञों से नहीं हो सकता. मैं सबूत के आधार पर काम करती हूँ न कि अनुमानों और मान्यताओं पर. बहुत सारे ईमानदार, मेहनती लोग हैं जो काम करना चाहते हैं लेकिन जिन्हें सिस्टम में काम नहीं करने दिया जाता. मैं उन सबके लिए एक उत्साहवर्धक माहौल बनाना चाहती हूँ. जब संस्थाएँ मज़बूत होती हैं तो प्रतिभाएँ सतह पर अपने आप आ जाती हैं और जब वे कमजोर होती हैं तो ग़लत एवं भ्रष्ट लोग सही एवं निर्दोष लोगों की क़ीमत पर आगे बढ़ जाते हैं.”

पुष्पम प्रिया चौधरी एक प्रोग्रेसिव बिहार का विज़न रखती हैं – “मुझे अपने नागरिकों और मतदाताओं में यक़ीन है. हमने सालों तक बर्दाश्त किया है. अब बहुत हो गया. बिहार अब हमेशा के लिए बदलेगा और अब यह साक्ष्य-आधारित पब्लिक पॉलिसी एवं पॉज़िटिव पॉलिटिक्स से शासित होगा. और यह बिल्कुल तय है.”

हम तेजी से आगे बढ़ने में
यथास्थिति बर्दाश्त नहीं कर सकते
आगे बढ़ना चुनें’ इसी काम के लिए वह बिहार आईं है और यकीन करें ऐसा होकर रहेगा. बिहार बदलेगा. बिहार को प्लुरल्स बदलेगी. ऐतिहासिक दुस्साहस करने वाली पुष्पम प्रिया चौधरी बिहार इसलिए आईं है.
औऱ रेणु के शब्दों में स्वयंभू ज्ञानी “जोतिखी काका’ लोग राजनीति का पतरा बांचते रह जाएँगे.

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