जानिए आखिर क्या है मथुरा के श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद ? क्या है 1968 का वह समझौता

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मथुरा (Mathura) के कृष्ण जन्मभूमि-ईदगाह मामले (Krishna Janmabhoomi) की सुनवाई को कोर्ट तैयार हो गया है. मथुरा की एक अदालत हिंदू समूह की याचिका की 30 सितंबर को सुनवाई करेगी. याचिका में मंदिर के पास बनी ईदगाह (Mathura Idgah) को हटाने की मांग की गई है.

याचिका में जमीन (Krishna Janmabhoomi) को लेकर 1968 में हुए समझौते को गलत बताया गया है. हालांकि इस याचिका को लेकर श्रीकृष्ण जन्मस्थान संस्थान ट्रस्ट का कहना है कि इस केस से उनका कोई लेना देना नहीं है. जानिए क्या है पूरा विवाद और किसने दाखिल की याचिका-

याचिका में क्या कहा गया है?

यह मुकदमा भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशव देव खेवट, मौजा मथुरा बाजार शहर की ओर से उनकी अंतरंग सखी के रूप में अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री, विष्णु शंकर जैन, हरिशंकर जैन और तीन अन्य ने दाखिल किया है. याचिका में कहा गया है कि मुसलमानों की मदद से शाही ईदगाह ट्रस्ट ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि (Krishna Janmabhoomi) पर कब्जा कर लिया और ईश्वर के स्थान पर एक ढांचे का निर्माण कर दिया. भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्रीकृष्ण का जन्मस्थान उसी ढांचे के नीचे स्थित है.

यह था 1968 का समझौता

मथुरा में शादी ईदगाह मस्जिद कृष्ण जन्मभूमि से लगी हुई बनी है. इतिहासकार मानते हैं कि औरंगजेब ने प्राचीन केशवनाथ मंदिर को नष्ट कर दिया था और शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण कराया था. 1935 में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने वाराणसी के हिंदू राजा को जमीन के कानूनी अधिकार सौंप दिए थे जिस पर मस्जिद खड़ी थी.

बता दें कि 1951 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट बनाकर यह तय किया गया कि वहां दोबारा भव्य मंदिर का निर्माण होगा और ट्रस्ट उसका प्रबंधन करेगा. इसके बाद 1958 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ नाम की संस्था का गठन किया गया था. कानूनी तौर पर इस संस्था को जमीन पर मालिकाना हक हासिल नहीं था, लेकिन इसने ट्रस्ट के लिए तय सारी भूमिकाएं निभानी शुरू कर दीं.

इस संस्था ने 1964 में पूरी जमीन पर नियंत्रण के लिए एक सिविल केस दायर किया, लेकिन 1968 में खुद ही मुस्लिम पक्ष के साथ समझौता कर लिया. इसके तहत मुस्लिम पक्ष ने मंदिर के लिए अपने कब्जे की कुछ जगह छोड़ी और उन्हें (मुस्लिम पक्ष को) उसके बदले पास की जगह दे दी गई. जिस जमीन पर मस्जिद बनी है, वह श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्ट के नाम पर है. याचिका में कहा गया कि ऐसे में सेवा संघ द्वारा किया गया समझौता गलत है.

पहले कब पहुंचा था कोर्ट में मामला?

इससे पहले मथुरा के सिविल जज की अदालत में एक और वाद दाखिल हुआ था जिसे श्रीकृष्‍ण जन्‍म सेवा संस्‍थान और ट्रस्‍ट के बीच समझौते के आधार पर बंद कर दिया गया. 20 जुलाई 1973 को इस संबंध में कोर्ट ने एक निर्णय दिया था. अभी के वाद में अदालत के उस फैसले को रद्द करने की मांग की गई है. इसके साथ ही यह भी मांग की गई है कि विवादित स्‍थल को बाल श्रीकृष्‍ण का जन्‍मस्‍थान घोषित किया जाए.

ट्रस्ट का क्या है तर्क?

वहीं श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान ट्रस्ट (श्रीकृष्ण जन्मभूमि न्यास) के सचिव कपिल शर्मा ने कहा कि ट्रस्ट से इस याचिका या इससे जुड़े लोगों से कोई लेना-देना नहीं है. इन लोगों ने अपनी तरफ से याचिका दायर की है. हमें इससे कोई मतलब नहीं है.

यह ऐक्ट बन सकता है रुकावट

हालांकि इस केस में Place of worship Act 1991 की रुकावट है. इस ऐक्ट के मुताबिक, आजादी के दिन 15 अगस्त 1947 को जो धार्मिक स्थल जिस संप्रदाय का था, उसी का रहेगा. इस ऐक्ट के तहत सिर्फ रामजन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को छूट दी गई थी.

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