कर्नाटक में BJP को साख बचाने के लिए धार्मिक कदम जरुरी

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ब्रिजेश तिवारी  

२०१४ में जब मोदी लहर चली तो भारतीय जनता पार्टी का विजय रथ मानो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा था . भारत के लगभग हर कोने में बीजेपी ने अपना झंडा लहरा दिया. इस  जीत के लिए बीजेपी के कई राजनीतिक जुमले काम आये जो सियासी पंडितो द्वारा तैयार कर अपने मतदाता को लुभाने के लिए प्रयोग किया गए.

यह सही है की लोकतंत्र में हर पार्टी अपने चुनावी अभियान में मतदाता को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए जनता से वादा करती है. लेकिन सफल वही होता है जो उस राज्य की चुनावी दंगल के दाव पेच को सही तरीके से आजमाता है. और शायद बीजेपी इसे भली भाती समझ चुकी है. अब बीजेपी के लिए साख की लड़ाई बन चुका है कर्नाटक का चुनाव, क्योंकी कर्नाटक का चुनाव २०१९ में बीजेपी के लिए लोकसभा का भविष्य तय करेगा, इसीलिए बीजेपी कर्नाटक में चुनावी संखनाद बजने के अब हर उस धार्मिक अश्त्र का प्रयोग कर रही है जिससे इस चुनाव में विजय प्राप्त किया जा सके.

कर्नाटक की राजनीत में धर्मं का बहोत बड़ा योगदान रहा है. यहाँ हमेशा से ही मठों की राजनीति हावी रही और लोगों पर मठों का खासा प्रभाव रहा है. लिहाजा राजनीतिक पार्टियां चुनावी समय में मठों के दर्शन कर वहां के मठाधीशों को अपनी ओर लुभाने की कोशिश करती रही हैं. में कर्नाटक के सियासी खिलाडी अमित शाह और राहुल गाँधी दोनों में माठाधीशो का आशीर्वाद प्राप्त करेने की होड़ लगी है. 

यह सही है की कांग्रेस कर्नाटक में इतनी कमजोर नहीं है जितनी विगत में कुछ राज्यों में थी. इसलिए यहां पर भाजपा के लिए चुनौती बड़ी है. कांग्रेस के लिए भी यह चुनाव अग्निपरीक्षा हैं क्योंकि यहां पर जीत के साथ उसके हार के सिलसिले पर विराम लग सकता है. शायद इसीलिए मुख्यमंत्री सिद्धरमैया सरकार लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने की पहल से उत्पन्न राजनीतिक स्थिति का फायदा उठाने में लगे हैं तो वही भाजपा कर्नाटक में सत्ता हासिल करने के लिये कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है.

अब लिंगायत समुदाय के कद्दावर नेता बीएस येदियुरप्पा भी अपनी धार्मिक तलवार से कांग्रेस के को भेदने में निरंतर लगे हैं, राज्य में करीब 20 प्रतिशत आबादी लिंगायत समुदाय की है और 100 सीटों पर इस समुदाय का प्रभाव माना जाता है. इस समुदाय को भाजपा का पारंपरिक वोटबैंक माना जाता है लेकिन सिद्धरमैया सरकार के ‘लिंगायत कार्ड’ ने भाजपा के लिए चुनौती खड़ी कर दी है.

वहीं बीजेपी अब कर्नाटक राज्य के ‘नाथ संप्रदाय’ को अपनी तरफ करने के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरखनाथ मंदिर के मठाधीश योगी आदित्यनाथ का चुनावी अखाड़े में उतरा है.हाल ही में हुए योगी के कर्नाटक दौरे में रामराज्य की बात कही गई योगी ने कहा “ भगवन राम जब अयोध्या से वनवास के लिए प्रस्थान किये तो कर्नाटक के हनुमान जी ने उनका साथ दिया और रामराज्य की स्थापना हुई”

बीजेपी के चुनावी विजय में संप्रदाय रोड़ा बने हुए हैं क्योंकि  वोकालिगा समुदाय के बड़े नेता पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवेगौड़ा माने जाते हैं और उनकी पार्टी जनता दल (सेकुलर) का चुनचुनगिरी मठ पर खासा प्रभाव है. इसीलिए भाजपा और अमित शाह भी इस बार वोकालिगा समुदाय में पैठ बनाने का प्रयास कर रहे हैं जनसंख्या के लिहाज से कर्नाटक के दूसरे प्रभावी समुदाय वोकालिगा की आबादी 12 फीसदी है. राज्य में वोकालिगा समुदाय के 150 मठ हैं, जिनमें ज्यादातर दक्षिण कर्नाटक में हैं.

कर्नाटक में कुरबा समुदाय भी राजनीत में अहम् भूमिका अदा करता है प्रदेश में इस समुदाय से 80 से अधिक मठ जुड़े हैं. मुख्य मठ दावणगेरे में श्रीगैरे मठ है. मौजूदा मुख्यमंत्री सि द्धरमैया इसी समुदाय से आते हैं. राज्य में कुरबा आबादी 8 फीसदी है, लेकिन कर्नाटक में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को दाव साख पर लगी है बीजेपी को २०१९ का लोकसभ चुनाव दिखाई दे रहा है तो वही कांग्रेश को मिल रही लगातार हार उसकी स्तित्व के लिए खतरा बनता जा रहा है, इसीलिए दोनों पार्टियाँ शाम दाम दंड भेद अपनाकर कर्नाटक को जितना चाहती है.

एक सर्वे के अनुसर कर्नाटक में दोनी ही पार्टियों को बहुमत मिलते नहीं दिखाई दे रहा है. इसीलिए वोकालिगा समुदाय के नेता एचडी देवेगौड़ा को किंग मेकर माना जा रहा है. अब यह देखना दिलचस्प होगा की इस धार्मिक आधार पर सियासी खेल का बादशाह कौन बनता है .   

   

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