कभी जीता था देश के लिए मेडल, लेकिन आज मांगनी पड़ रही है भीख

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जकार्ता में संपन्न हुए 18वें एशियन गेम्स में भारतीय खिलाड़ियों ने 69 मेडल जीतकर इतिहास रच दिया है। ऐसे में जहाँ इन खिलाडियों को सरकारी नौकरी और ढेरों रुपये बतौर इनाम देने की घोषणा की गई। वहीँ  कुछ खिलाडी ऐसे भी हैं जिन्होंने देश के लिए मैडल तो जीते, लेकिन आज भीख मांगने को मजबूर हैं।

यहाँ हम बात कर रहें हैं मनमोहन सिंह लोधी की। जो कि एक पैरा एथलीट हैं। मध्यप्रदेश के नरसिंहपुर ज़िले के कंदरपुर गांव में रहने वाले मनमोहन सिंह लोधी 2009 में एक दुर्घटना में अपने हाथ खो बैठे थे। बावजूद इसके उन्होंने वर्ष 2017 में अहमदाबाद में हुए स्पेशल ओलंपिक में 100 मीटर दौड़ में  सिल्वर मेडल हासिल किया था। 

वहीँ मध्य प्रदेश सरकार ने मनमोहन सिंह लोधी को नौकरी देने का वादा तो किया, लेकिन  मगर कई महीनों तक मुख्यमंत्री दफतर  के चक्कर काटने के बाद भी उन्हें नौकरी नहीं मिली। जिसके चलते अब उन्हें अपना घर और सपना पूरा करने के लिए मजबूरन भीख मांगनी पड़ रही है। वैसे हमारे देश में यह कोई पहला मौका नहीं है जब देश का गौरव बढ़ाने वाले खिलाडियों को भूल दिया गया हो। आपने ऐसी कई घटनाये देखी और पढ़ी होंगी,जब प्रशासनिक अमलों की लापरवाही और लाल फीताशाही के चलते इन खिलाडियों के हौसलों और सपनों ने दम तोड़ दिया।

इससे पहले विश्व पैरा चैंपियनशिप में नेत्रहीन होते हुए भी स्विमिंग में  गोल्ड मेडल जीतने वाली कंचनमाला पांडे को बर्लिन की गलियों में भीख मांगने को मजबूर होना पड़ा था।

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